Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह
Tags: king, offspring, valor, demon, charity
The story revolves around a wealthy king who, despite marrying multiple women, remains childless. After encountering a divine being, he learns that mangoes from a specific tree will grant him offspring. The king's queens eventually bear children, including a powerful son named Udan Chhatri, born to the youngest queen who was initially cast out.Udan Chhatri showcases his extraordinary strength by defeating challenges posed by his six brothers and a ghostly elephant. He becomes famous for his valor and, alongside his brothers, sets out to confront a demon terrorizing another kingdom. They succeed in killing the demon, winning the favor of the king who promises his daughter in marriage to Udan Chhatri.
Udan Chhatri emphasizes the importance of charity before marriage, and after fulfilling this condition, he and his brothers find love and happiness. The story concludes with the brothers enjoying harmony and prosperity, having overcome their struggles and fulfilling their responsibilities, living happily ever after.
एगो राजा हलन। उनका बड़ी धन हल। बाल-बच्चा न होव हल। तब एक-एक कर छव गो सादी कयलन । तइयो न एको लइकन होयल । तब एक सादी आउ कयलन । तइयो कोई बाल-बच्चा न होयल।
राजा एक दिन भोरे मैदान जाइत हलन कि एगो कानुन पर नजर पड़ल । कानुन कहलक कि आज बाँझ के मुँह देखली हे। का जनी कइसन तो दिन जाहे? सुनके राजा जंगल में चल गेलन। उहाँ ध्यान लगौलन तो भगवान खुस होके अयलन । ध्यान तोड़लन तो पूछलन कि तोरा का चाही। राजा कहलन कि हमरा कोई बाल-बच्चा न हे। हम सात गो सादी कइली हे। तब भगवान कहलन कि इहे रास्ता में आम के एगो पेड़ है, जहाँ सात आम के घउद हे। एक झटका में घउद के गिरा के ऊपर ही लोक लीहँ ।
राजा आम तर पहुँचलन, आम तोड़लन आउ अपन घरे चललन । घरे रानी सबके एकह गो आम खिला देलन । सातो के गरभ रह गेल। झगड़ा कर के छोटकी के सब रानी घर से निकाल देलन ।
ऊ दोसर के राज में, जंगल में जाके रोइत हल। ओकर रोवाई से सब कुछ दुःख में भे गेल। ऊ गाँव के राजा आयल आउ पूछलक कि काहाँ तोर घर हवऽ बहिन? राजा बहिन के नाता लगा के ओकरा घरे ले गेलन । उहईं पर उनका लड़का पैदा लेलक । ओकर नाम उदन छत्री परल।
ओने छवों रानी से छव भाई के जलम भेल । एहो सब बीर बलवान भेलन । सब लड़कन पढ़े लगलन तब ऊ सब कुस्ती भी करऽ हलन । उदन छत्री ई छवों के अखाड़ा में आके इनखर मुगदर तोड़ देलन । तब छवो भाई अयलन आउ कहलन कि कउन अइसन वीर हे जे हम्मर मुगदर तुड़ देलक हे? फिर ऊ चउरासी मन के मुगदर बना के ले आयल आउ अखाड़ा में रख देलक । फिर बिहाने उदन छत्री ऊहाँ अयलन आउ मुगदर देख के कुस्ती कयलन आउ मुगदर उठा के पटक देलन । ऊ टूट के चार गो हो गेल। ओकरा चारो कोना पर धर देलन । उहाँ से अप्पन घरे चल अयलन।
फिर छवो भाई गेलन आउ देखलन कि मुगदर तोड़ल है। ऊ कहलन कि कउन अइसन वीर हे जे मुगदर तोड़ देहे। तीसरा दिन भुतही हाथी के ले गेलन । ओही समय में उदन छत्री ओही अखाड़ा में कसरत करइत हलन, से देखलन हाथी के आउ इलम से हाथी के पाछा हो गेलन, आउ पोंछी धर लेलन आउ घुमा के बीग देलन कि कहाँ हाथी आउ छवो भाई चल गेलन । एकर बाद उदन छत्री घरे चल गेलन ।
जब ओहनी छवों लइकन के बाप के मालूम भेल तब पलटन साज के ऊ चलल कि काहे हमार छवों बेटा के बीग देलक हे। तब उदन छत्री के मामू ओकरा से पूछलन कि का चीज के गरदा उड़इत हे? ऊ कहलन कि हम ओकर भुतही हाथी आउ छवो बेटा के मार देली । ओही से ऊ सब हमरा मारे ला पलटन साजले आवइत हथ । ऊ राजा कहलन कि तू हमरा कहतऽ हल तऽ हमहूँ न पलटन सजती हल? तब उदन छत्री कहलन कि हमरा से फाजिल होवत हल तब न हम अपने के कहती हल। एतने में फौज आ गेल। जब ऊ एक ताड़ दूर रहल त एगो ताड़ कबाड़ के ऊ लगलन भाँजे आउ ओकरा फौज पर बीग देलन। केतने मर गेलन, केतने भाग गेलन।
ओकर बाद ओकर बाप आयल । ऊ भी ओकर मामा से आरजू-विनती कयलक कि गलत भेल से माँफ होवे के चाहीं। तब उदन छत्री आउ ओकर माय के लेके राजा चलल घरे। पहुँच गेल तो रनियन किरिया धरा के कहलन कि जब तक तू सोनवा रानी के न लयवें तब तक घर में दुके न देल जतउ ।
आवते उदन छत्री ई सुनके माय से कहलन कि हम जाइत ही, सोनवा रानी से सादी कर के ही हम आयम । तब ओकर माय सुनके आसीर्वाद देलन आउ पीठ ठोकलन कि तोर काम पूरा हो जतवऽ । एतना कहके माता के प्रणाम कर के ऊ चललन । जाइत-जाइत देखलक कि एगो राजा वंसीसिंह तालाब में ताड़ के पेड़ से बंसी बझावइत हलन । उदन छत्री देखके कहलन कि वीर कही ला तो वंसीसिंह के । एतना सुन के वंसीसिंह बोललन कि वीर कही ला तो उदन छत्री के, जे छव भाई आउ भुतनी हाथी के अइसन बीग देलन कि आज तक पता न चलल । तब ऊ कहलन कि उदन छत्री तो हमरे नाम है। वंसीसिंह बंसी ओही दरिआव में डाल देलन आउ कहलन कि तोरे साथ हमहूँ चलम ।
जाइत- जाइत एक रस्ता में भेंटयलन राजा बघमल सिंह, जे बाघ के दवाहीं में नधले हलन । तब कहे लगलन कि वीर कही ला तो बघमल सिंह के। एकरा पर बघमल सिंह कहलक कि वीर कही ला उदन छत्री के । त ऊ कहलन कि उदन छत्री तो हमरे नाम हे । एतना सुनके बघमल सिंह कई बाघ के मूँड़ी छटका देलन तो सब बघवन जने तने भाग गेलन । तीनों साथ हो गेलन ।
उदन छत्री, वंसीसिंह, बघमल सिंह तीनों साथ चललन तो दूसर राज़ में जाके रात में ठहर गेलन । उदन छत्री आँटा साने लगलन। वंसी सिंह चइली बटोरे लगलन । बघमल सिंह आग आने गेलन तो कहीं आग न मिलल । एक जई धुआँ देख के भीर गेलन । उहाँ दानवा एगो औरत के भेस में आग सुलगा के रखले हल। बघमल सिंह जा के आग मँगलन तो औरतिया कहलक कि आग में से लेलऽ । जब ऊ लेवे लगलन तो ऊ औरतिया उनका सउसे निगल गेल ।
उहाँ दूनो इयार आसा में ठहरल हलन। वंसीसिंह के उदन छत्री कहलन कि जाके देखऽ । उनका अयला पर ऊ औरतिया उनकरो निगल गेल। तब उदन छत्री भी बंदा तलवार लेके चललन आउ ओहिजे पहुँच गेलन । जाके आग ला चाल कयलन तो ऊ कहलक कि लेलऽ । आग ला गेलन आउ होसिआरे हलन कि दानवा खाय ला चलल, तो अप्पन तलवार खींच के मारलन तो ओकर सिर धड़ से अलग हो गेल। ओकर लाद-पेट चीर देलन तो ओकरा में से दूनो इयार जीते निकल गेलन ।
ऊ गाँव के राजा पहिले अइसन लिख के टाँग देलन हल कि जे ऊ दानवा के मार देत ओकरे साथ हम अप्पन लड़की के सादी कर देम । भोरे होत हल्ला भेल कि दानवा मरा गेल। सिपाही पता लगावे ला चलल आउ एहनी, के पास आ गेल। पूछलक तो छत्री कहलन कि दानवा के वंसीसिंह मारलन हे । उनकर सादी राजा के लड़की से उहईं हो गेल । ओहनी इयार दु-चार दिन उहईं ठहर गेलन ।
उदन छत्री कहलन कि तू इहई रहऽ । हम जाइत हीवऽ । तब वंसीसिंह कहलन कि अप्पन विसय में जानकारी ला कुछ बतावऽ । उदन छत्री कहलन कि अंगना में तुलसी जी रोप दऽ । जब जनिहँ कि सूख गेल तो समझ लिहँ कि इयार मारल गेलन । तऽ खोज में अइहँऽ । ई कहके बघमल सिंह आउ उदन छत्री उहाँ से चल देलन ।
उदन चलइत-चलइत एगो दोसर राजा के राज में पहुँच गेलन। उहाँ भी एगो दानवा हल जे बड़ी उत्पात मचौले रहऽ हल । राजा ओकरा एक आदमी रोज पारी बाँध देलन हल । ऊ खाके चल जा हल । राजा इहाँ लिखके रँगवा देलन हल कि जे ई दानवा के मारत ओकरा साथ हम अप्पन लड़की के बिआह देम ।
ओहनी ओही बस्ती में पहुँचलन आउ एगो कुम्हार के इहाँ ठहर गेलन । आज ओकर बेटा के पारी हल । ऊ कुम्हार के एकलौता बेटा हल जेकर गौना होके आजे आयल हल । ई सब हाल उदन छत्री के मालूम भेल। ऊ कुम्हनियाँ से कहलन कि आज तोर बेटा के जगह पर हम ही जबऊ आउ तोर बेटा बच जतऊ । आधा रात के समय में दानवा कुम्हार के दूरा पर पहुँचलक। उदन छत्री बघमल सिंह से कहलक कि हमनी के अब दानवा से लइकवा के बचावे के चाहीं । तब बघमल सिंह दानवा के पास गेलन आउ लड़े लगलन । लड़ते-लड़ते ओकरा जान से मुआ देलनं ।
सुबह होते हल्ला होयल कि दानव मारल गेल। सिपाही छूटल आउ पता लगा के उदन छत्री भीर गेल तो पता चलल कि बघमल सिंह ओकरा मारलन हे । राजा अपन बेटी से उनकर सादी कर देलन । कुछ दिन के बाद उदन छत्री कहलन कि अब हम जाइत ही । हमर चिन्हा ओही हे कि तुलसी के गाछ जउन दिन आँगन में सूख जायत त समझ लिहँऽ कि हम मर गेली हे । तऽ तू खोज में अइहँऽ । ई कह के उदन छत्री उहाँ से चल देलन ।
जाइते-जाइते ऊ सरजू किनारे पहुँच गेलन । उहईं पर एगो दैत्य के लड़की पेड़ में दुलुआ दुलइत हे । ओकरे से जाके उदन छत्री बोललन कि तू कउन हे? ऊ कहलक कि हम दैत्य के लड़की ही । हम्मर नाम सोनवा रानी हे । तूं इहाँ आ तो गेलऽ हे, बाकि हम्मर बापजान देख लेथुन तो खा जथुन । ऊ कहलन कि बचाना तो तोरे अख्तियार हे। कोई हाल से सोनवा रानी उनका छिपा देलक ।
साँझ के दानव आयल । खा-पी के बेटिया जब उनकर गोड़ टीपे लगल तो ओकर आँख से आँसू चल गेल। बाप पूछलक कि बेटी बिना घटा-घमड़ के पानी कहाँ से आ पड़ल? बेटी कहलक कि पानी न पड़ल हे । हम्मर आँख से आँसू गिरल है कि अब तू बूढ़ा हो गेल हे, आउ अभी हम्मर सादी न भेल हे । हम्मर सादी कर दऽ । दानव बोलल कि घर खोज ही तो वर न मिले हे, आउ वर खोज ही तो घर न मिले हे।
बाकि ई बजह से ओकरा सादी दानवा न कर हल कि ओकर मृत्यु ओकर दमादे के हाथ से होवे ला लिखल हल । बेटी के कहे पर ऊ तइयार भे गेल । पूरा कसम खिआ के बेटी उदन छत्री के बाप के सामने कयलक I सोनवा रानी आउ उदन छत्री के सादी भे गेल । दूनो साथे रहे लगलन ।
एक दिन उदन छत्री अप्पन रानी से कहलन कि तूं पूछिएँ कि तोर बाप के प्राण कहाँ रहऽ हे? सोनवा रानी बाप से पूछलक तो बतैयवे न करे कि तोरा ई जाने से का काम हे ? बड़ी कहे पर कहलक कि एही दरिआव में एगो गाछ हे। ओकरे पर एगो तोता हे, ओही तोतवा में हम्मर परान हे । सोनवा रानी अप्पन मरद से ई हाल कह सुनौलक । उदन छत्री फिन अप्पन रानी से कहलन कि आज ई पूछिहें कि ऊ जंगल में कने जा हथ? काहे से कि जरूरत पड़े पर कइसे खोजल जायत? पूछे पर सोनवा रानी से बप्पा कहकई कि जब हम जंगल में चले लगम तो उत्तर से चलम तो ई लाठी दखिन गिरत आउ पूरब से चलम तो पछिम गिरत। हम बराबर चालीस कोस के दूर में जा ही आउ रहऽ ही। दरिआव में जाय ला हमरा एगो खड़ाऊ हे । ओकरा पर चढ़ जाय से दरिआव सूख जा हे । उदन छत्री ई सब बात अप्पन रानी से जान गेलन ।
दानवा बाहर निकलल हल । उदन छत्री खड़ाऊँ पहेन के दरिआव में हेललन। ओकरा पानी सूख गेल । ओमे जाके ओही गाछ पर चढ़लन आउ तोता के उतार लेलन तो दानवा के उहाँ मालूम हो गेल । ऊ दौड़ल तब तक खड़ाऊ पहेन के दरिआव पार हो गेलन । उदन छत्री देखलन कि दानवा बेतहासा चलल आवइत हे आउ हम्मर जान अब न बचत तऽ सुग्गा के दूनो गोड़ तोड़ देलन । तइयो दानवा घोलटाइत-पोलटाइत चलल आवइत हे । तऽ तोता के मूँड़ी ममोर के उदन छत्री अप्पन पिछुत्ती बीग देलन। दानवा मर गेल।
भिनसारे उदन छत्री अप्पन रानी से कहलन कि बापजान मर गेलथुन । हम अइसन सपनइली हे। तब सोनवा रानी कहलन कि हम्मर बाप के जान मारेवाला कोई जलम न लेलक हे । ऊ कहलन कि विसवास न हवऽ तो पिछुत्ती जा के देख आवऽ । ऊ जा के देखलन तो ठीके मरल हथ । रोयलन-पिटलन आउ दूनो मिल के काम-किरिया कर देलन ।
जब सोनवा रानी सरजू जी में नेहाय गेलन तो अप्पन सोना के टूटल केस एगो खोना में रख के दहा देलन । नेहा के अयला पर उदन छत्री पुछलन कि नेहाय कहाँ गेलऽ हल । त ऊ कहलन कि हम सरजू जी में नेहाय गेल हली। केस टुटलव से का कयलऽ? रानी कहलन कि खोना में रखके दहला देली कि कोई गरीब-दुखिया के काम दे देतई। तंब सुनके उदन छत्री कहलन कि रानी तू तो हम्मर दुसमन अरज देलऽ ।
काम-किरिया सब खतम हो गेल। ई सोना के केस दहके दोसर राज में चल गेल । ई केस के चमकइत देख के ऊ देस के राजा मल्लाह के छाने ला भेजलक । मल्लाह छान के ले आयल आउ राजा देखके कहलन कि जेकर सोना के केस हे ऊ आदमी कउची के होयत? यदि ऊ आदमी के कोई ला देबे तो हम ओकरा आधा राज-पाट लिख देम। एगो बुढ़िया तइयार होयल । कहलक कि हमरा पाँच सौ रुपया, छव महीना के खरचा, दू मल्लाह आउ एगो डेंगी के इन्तजाम कर दीहीं। राजा साहब सुनके ई सब इंतजाम तुरते कर देलन ।
मल्लाह नाव खोल के सब के साथ चलल। ओहनी ओही महल के सामने दरिआव में डेरा गिरा देलक । बुढ़िया उहाँ से चल के ओकरे ही पहुँचल आउ भइया हो भइया कहके रोवे लगल । सुनके सोनवा रानी कहलक कि हम तोरा न चिन्हइत हिलवऽ । ऊ कहकई कि तूं मइयाँ का चिन्हवे? जहिना तोर जलम होयल हल ओकर पहिले ही हम्मर गवना हो गेल हल। भाई के मरे के हाल सुन के हम इहाँ अइली हे। से ऊ बुढ़िया उहईं रहे लगल । उहाँ रहके धीरे-धीरे विसवास जमौलक ।
सोनवा रानी से एक दिन पूछलक कि राजा से पूछिहें कि का में उनकर परान रहऽ हे। रानी राजा से पूछलन तो राजा बतौलन कि बंदा तलवार में हम्मर परान रहऽ हे। ई बात सोनवा से बुढ़िया के मालूम हो गेल। एकरा बाद बुढ़िया रानी से कोई बात न पूछे। खाली झुरी बटोर के दुरा पर टाल लगा देलक। बड़ी मानी ऊँचा ढेर लगा देलक । राजा उदन छत्री जब सिकार खेल के आवथ तो बुढ़िया बंदा तलवार जने-तने रख देवे। एक दिन उनका भोर पड़ गेल आउ बिना तलवारे लेले जंगल में चल गेलन । तब तक बुढ़िया तलवार के ओही झुरी के ढेरी में घुसा देलक आउ आग लगा देलक । लहर से तलवार धिपल तो उदन छत्री के मालूम भे गेल। उहाँ से ऊ चललन ।
आवइत-आवइत घरे तक सक्तिहीन हो गेलन। कहलन कि रानी अब हम न बचबवऽ । मर गेला पर न जारिहँऽ, न गाड़िऽ बलुक एगो बकसा बनाके ओही में कडुआ तेल रख के हमरा बंद करके रख दीहँऽ आउ ताला लगा के घर में रख दीहँऽ। कुंजी तेले में रहे दीहँऽ । ई कहके राजा मर गेलन ।
रानी तेल में रखके आउ बकसे में कुंजी डाल के घर में ताला लगा देलन । बुढ़िया कहलक कि अब तो मरिए गेलथुनए चलऽ सरजू जी में नेहा-धेआ लऽ । तब दूनो साथै नेहाए गेलन । बुढ़िया कहलक कि नउवे पर बइठ के नेहा लेल जाय बढ़िया से। दुख में सोनवा रानी के सब बुध भुला गेल आउ नाव पर जा के ऊ बइठल तो मल्लाह लोग नाव खोल देलन । नाव ओही राजा के घाट पर पहुँच गेल। बुढ़िया राजा के खबर देलक ।
राजा सबेरे कचहरी बंद कर के सोनवा रानी के घरे ले गेल। सोनवा रानी कहलक कि हम तोर तो होइए गेलिवऽ बाकि सरजू जी के किनारे मंदिर बना दऽ । बारह बरस तक सदाबर्त बाँटबवऽ तब तोरा साथ सादी करबवऽ । उहई ऊ सदावर्त्त बाँटे लगल ।
इधर बघमल सिंह आउ वंसीसिंह के घर में तुलसी जी सूख गेलन तो दूनो इयार घरे से निकललन । चलइत- चलइत दूनो राह में मिल गेलन तऽ पता चल गेल कि उदन छत्री पर विपत आ गेल हे । से ओहनी दूनो उनका खोजे निकललन आउ उदन छत्री के सरजू किनारे घर पर पहुँच गेलन । जा के बकसा देखलन तो ताला खोललन। ओकरा खोलके देखलन तो उनकर इयार मरल हथ । उहईं लहलहाइत आग देखलन तो सोचलन कि इयार के तलवार एकरे बुझाइत हवऽ । बंसीसिंह कहलन कि दस घइला बाघिन के दूध चाहऽ हवऽ ।
दूनो इयार पाँच-पाँच गो घइला लेके जंगल में दूध ला निकललन। बघमल सिंह बाघिन के पकड़थ आउ बंसीसिंह दूहले जाय । दस घइला दूध दूह के लवलन आउ ओकरा से आग के बुता देलन । खोर के ओकर राख में से बंदा तलवार निकाल लेलन, ओकरा साफ कयलन तो इयार बकसा में से उठके बइठ गेलन आउ कहलन कि इयार कच्चे नीन उठा देलऽ । ओहनी कहलन कि कच्चे नीन तोर दुसमन सूते।
तीनो अप्पन-अप्पन समाचार कहलन सुनलन। सब बात मालूम होयल आउ रानी के सगरो खोजे लगलन। रानी घर में न मिललन। उनकर एगो सुग्गा मिलल । सुगवे के गला में एगो चिट्ठी बान्ध के उड़ा देलन आउ कहलन कि एही नदी के किनारे एगो धर्मात्मा औरत सदावर्त बाँटइत हे। सुग्गा ऊहईं उड़के गेल आउ रानी के हाथ पर जाके बइठ गेल । सुग्गा के गला में चिट्ठी देख के पढ़लन तो उनका मालूम भे गेल कि उनकर मरद जी गेलन हेऽ । उनखा अप्पन समाचार लिखलन कि हमहूँ अब जल्दी आ जायम । इहाँ आवे के जरूरत न हे। ई हाल लेके सुग्गा चल गेल। सुग्गा से इयारन के सब हाल मालूम हो गेल ।
इहाँ रानी बुढ़िया के बोलौवलन आउ कहलन कि राजा से अब सादी करम बाकि उड़नखटोला ले आवथ ओकरे पर हमनी चढ़के हवा खाय चलम। राजा उड़नखटोला लेके आ गेलन। खटोला उड़ल तो बुढ़िया के कोई हाल से ओही दरिआव में गिरा देलन आउ फिनो राजा के भी गिरा देलन आउ अप्पन घर में चल अयलन । अब इहाँ से तीनो इयार सोनवा रानी के लेके उड़नखटोला से चललन। सब बघमल सिंह के ससुरार उतर गेलन आउ इहऊँ से रोसगद्दी करा के चललन । इहाँ से दू डोली पर सवार होके दूनो रानी चललन आउ बंसी सिंह के ससुरार पहुँचलन। उहाँ से भी रोसगद्दी करौलन आउ चललन। तीनो रानी आउ तीनो इयार रोसगद्दी करा के चललन तो उदन छत्री कहलन कि तोहनी अपन अपन घरे जा। तब ओहनी कहलन कि न पहिले तोरे ही तीनों के दुआरी लग जायत तब हमनी घरे जायम ।
उदन छत्री अप्पन नगर में आ गेलन। दरवाजा लग गेल। दू-चार रोज के बाद बघमल सिंह आउ बंसीसिंह भी अप्पन-अप्पन घरे चल गेलन। बाद में उदन छत्री बापजान से कहके अप्पन छवों सतेली माय के गढ़हरा भरा देलन आउ अप्पन माय के साथए सोनवा रानी के साथ भी खुसी से जीवन बितावे लगलन ।
Once upon a time, there was a king who was very wealthy but had no children. He married six women one after the other, but still, he remained childless. Finally, he married again, but still, there were no offspring.
One morning while the king was walking in the field, he came across a law that said he would meet a barren woman today. The king, curious about what kind of day it would be, went into the forest. While meditating there, God appeared to him and, breaking his meditation, asked him what he desired. The king expressed his longing for children, mentioning that he had married seven women. God replied that there was a mango tree on a certain path where seven mangoes were hanging. He advised the king to shake the tree, and the mangoes would fall, leading to descendants.
The king went to the tree, picked the mangoes, and returned home. He gave each of his queens one mango, and soon all of them were pregnant. After some disputes, the younger queen was sent away by the others.
She wandered into another kingdom and wept in the forest. Her cries brought the attention of the village king, who inquired about her home. The king, having recognized her as his sister, took her to his house, where she later gave birth to a son named Udan Chhatri.
Meanwhile, the six queens gave birth to six brothers who grew strong and began studying, also participating in wrestling. When Udan Chhatri entered the wrestling arena and broke their wooden club, the six brothers inquired who was so brave to have done that. They brought a club weighing 84 mann and challenged him. The next morning, Udan Chhatri came back to test it, lifting it and breaking it into four pieces.
The six brothers were astonished that someone was capable of such strength. They learned about Udan Chhatri's prowess and were eager to find him.
When they realized the club was broken, they questioned who had done it. On the third day, they sought a ghostly elephant. At that time, Udan Chhatri was practicing in the arena and saw the elephant. Realizing the situation, he seized the opportunity and tricked the elephant. After a struggle, he managed to defeat it.
The following morning, a commotion arose that the elephant was slain. Soldiers were sent to investigate. Udan Chhatri shared that it was Vansi Singh who killed the elephant, so he was married to the king's daughter. The brothers stayed with their sister for a few days before Udan Chhatri decided to leave.
Udan Chhatri instructed Vansi Singh to gather information about their father. After some questions, Vansi Singh learned that an important tree had a parrot containing their father’s soul. Udan instructed to write to them about their whereabouts, and when the time comes to seek them, they will look for their father.
The three brothers journeyed, and at another king's land, they found another demon causing havoc. This king used to bind one person every day and feed him to the demon. The proclamation circulated that whoever kills the demon would be permitted to marry the king's daughter.
Udan Chhatri and his brothers made arrangements to confront the demon. After a fierce battle, they succeeded in killing it and consequently won the king's favor.
As festivities began, Udan Chhatri expressed a desire to marry the king's daughter, with the condition that for twelve years, they would perform charity before marrying. Vansi Singh and Baghmal Singh fulfilled this condition, while Udan Chhatri stayed engaged in charity and service to eventually win his beloved.
The demon's daughter turned out to be a lovely maiden, and when they revealed their intentions, the king offered them all as wives. Under the various trials they faced together, peace and prosperity returned to their lands.
After reuniting, they all enjoyed their marital bliss, leaving behind their past struggles, and ensuring they lived happily ever after, fulfilling both duty and virtue.
Udan Chhatri lived a dignified life, ensuring his family thrived well after the many obstacles they overcame. Each brother also found joy and completed their journeys with the love they sought.