थोड़ा दान बहुत फल

धर्म कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

Tags: Brahmin family, marriage, cultural traditions, festival, wisdom

The story is about a Brahmin family where a young boy is preparing for marriage to a girl from another Brahmin family. After completing his studies, they get married. The girl plans to return to her family for ten days during the Dussehra festival, and during her stay, her sister-in-law questions her in a manner that suggests she is testing her intelligence or wisdom through a kind of humorous or philosophical exchange.

एगो ब्राह्मन हलन जेकरा एगो लइका हले। दोसर जगुन एगो ब्राह्मनी हलन। उनका एगो लड़की हले। दूनो के बिआह के बातचीत चलल, तो ब्राह्मन कहलन कि ''अभी हम्मर बेटा पढ़इत हे। पढ़ला के बाद सादी करम!'' से लड़का पढ़े लगल आउ पढ़ला-लिखला पर दूनो के सादी हो गेल। सादी के बाद लड़कावा ससुरारे में रह गेल, आउ कहलक कि हम इन साल दसहरा खाके घरे आयम। से जब ऊ रात में कोहबर गेल, तो कनइयाँ पूछलक कि तूं तो बाबू साहब पढ़-लिख के होसिआर हो गेलऽ हे। से हम एक सवाल पूछऽ हिवऽ, ओकर जबाब देबऽ?

ब्राह्मन के लड़का सोचलक कि सवाल कइसनो होयत तो जबाब दे देम। ब्राह्मनी के बेटी पूछलक कि ''थोड़ा दान आउ बहुत फल के माने का होवऽ हे?'’ ब्राह्मन के लड़का सोचते-सोचते मर गेलन बाकि ओकर जबाव न आयल। ई पर कनइयाँ गोसा गेल, आउ कहलक कि एही पढ़ल हऽ? से जहाँ पाठसाला मिलो उहाँ तँ ई पढ़ आवऽ। ब्राह्मन के लइका ओइसने पाठसाला के खोज में चलल।

जाइते-जाइते कूप-काप जंगल में पहुँच गेल। उहाँ एगो झोपड़ी पर नजर पड़ल। ओकरा में एगो बुढ़िया रहऽ हल। ब्राह्मन के लड़का ओकरा भीर जाके बइठल आउ पूछलक कि तोरा कोई न हऊ? बुढ़िया कहलक कि ''न बाबू, एगो बुढ़वा हे। भीख माँग हे आउ दूनो खाऽ ही!'' एतने में बुढ़वा आ गेल। पूछलक कि ऊ के हथुन? बुढ़िया कहलक कि ई एगो मोसाफिर हथ। बुढ़वा कहलक कि आज पाव भर चाउर मिललउ हे। से आध पाव मोसाफिर के भी दे दिहें। से बुढ़िया दे देलक। लड़कावा भी अप्पन लोटा में बनाके खा लेलक।

बना खयला के बाद बुढ़वा पूछलक कि तूं कउन जात हऽ? लड़कावा कहलक कि हम ब्राह्मन के लड़का ही। एकरा पर बुढ़वा भागवत के कथा सुनावे ला कहलक। ब्राह्मन लइका सुनावे लगलन। रात भर बीत गेल। फजिर भेल तो कहलन कि ए जजमान, हम जरा टट्टी से आवऽ हियो, तो कथा सुनैवो! जब ऊ टट्टी से आयल तो देखऽ हे कि जजमान तो मर गेल हे। बाबा जी सोचलन कि अब हमर माथा पर बदनामी आ गेल। से चलिअइ बुढ़िया से कह देवे। से सबेरे बुढ़िया के कहके चल देलन।

रास्ता में एगो नदी मिलल। ओकरा में न घाट मिले न कुछ पता चले। ऊ में खाली साँप-बीछा भरल हल। ओकरा में देखलन कि एगो अदमी दहइत आवइत हे। ओकरा देखके बाबा जी पूछलन कि हम कहाँ पार होईं? एकरा पर ऊ कहलक कि ''तूं कहाँ जयमें? आउ का चाहऽ हे?'’ बाबा जी कहलन कि ''हम थोड़ा दान आउ बहुत फल वाला पाठसाला चाहऽ ही!'' सेकरा पर ऊ कहलक कि ''हम 'सतजुग' ही से न जानऽ हिअऊ! पीछे से त्रेता आवइत हउ। ओही बतैतो।'’ तनिके काल के बाद ऊ आ गेल । त्रेता कहलक कि ''ए भाई, तूं ई नदी में मत हेलिहऽ। से जान चल जतवऽ! हम कुछो न जानऽ हिअऊ! पीछे से 'कलजुगवा' आवइत हउ। ओही सब कुछ बतैतो कि थोड़ा दान आउ बहुत फलवाला पाठसाला कहाँ हउ?'’ से कलजुगवा भी पिठियाठोक आ गेल आउ कहलक कि ''ए बाबू, तूं कहाँ जान देवे ला अयलऽ हे?'’ बाबा जी कलजुगवा से अप्पन सब हाल कह सुनौलन। कलजुग बतौलक कि ऊ गाँव में राजा के बंस न चलइत हई। जे राजा के लड़का होतइन ओही तोरा बता देतथुन।

बाबा जी ओही राजा के पास गेलन । राजा हीं रहे लगलन । जब भगवान के दया से उनका नौ महीना के बाद एगो छोकड़ा भेल। तऽ बाबा जी कहलन कि ''जाके घर में परदा लगा दऽ। आउ आधा कर में लड़का के सुता दिहँऽ। ओकरा हम आसीर्वाद देके चल जायम!'' सब इंतजाम हो गेल। बाबा जी जइसहीं घरे आसीर्वाद देवे गेलन, औसहीं लइकवा हँस के पूछे हे कि ''कहाँ अयलऽ हे महराज जी?'’ आउ हँस के परनाम कयलक। बाबा जी कहलन कि ''हँसइत हऽ काहे?'’ तब लइकवा कहलक कि ''हम ओही न हियो, जे जंगला में पाव भर तोरा खिअलियो हल! हमरा ओतने तोरा खिलवला से केतना फल मिलल कि हम राजा घर में जलम ले लेलियो। देखऽ 'थोड़ा दान आउ बहुत फल' एही हे!'' एकरा बाद बाबा जी उहाँ से चल देलन। फिन ओही नदी पर पहुँचलन। जेकरा में साँप-बीछा भरल हल। उहाँ आन के 'कलजुगवा भइया, कलजुगवा भइया' कहके चाल करलन तऽ कलजुगवा आयल, आउ नदी में खड़ा हो गेल। धारा बीचे में से सूख गेल, बाबा जी बीचे से पार हो गेलन, आउ अप्पन ससुरार पहुँच गेलन। फिनो कोहबर में गेलन तो कनिया पुछलकथिन कि ''पढ़के आ गेलऽ?'’ तऽ बाबा जी अप्पन बीतल सब हाल कह सुनौलन1 जे सुनके ब्राह्मनी कहलन कि ''अब तूं थोड़ा दान, आउ बहुत फल, के माने समझ गेलऽ!''

See translation

Once there was a Brahmin who had a young boy. Another village had a Brahmin woman who also had a daughter. Discussions about their marriage were ongoing, and the Brahmin said, "Right now, my son is studying. After he completes his studies, we will arrange his marriage." After he finished studying, both the boy and girl were married. After the marriage, the girl went to her husband's home and said that she would come back after ten days of festival (Dussehra). So, one evening, when she went into the courtyard, her sister-in-law asked her, "You seem to have become quite smart by studying, Babu Sahab. Now I have a question for you, and you must answer it."