सच्चा साधु

धर्म कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

एगो साधु हलन। ऊ ठाकुर जी के रोज नया फल से भोग लगावऽ हलन । एक दिन के बात हे कि साधु जी नया फल खोजइत-खोजइत थक गेलन, बाकि ऊ न मिलल। आखिर में एगो खेत में देखलन कि गदरायल गोहुम हे। गोहुम के खेत में लठवाहा लाठा चलावइत हलइ। से साधु जी सोचलन कि इहईं नेहा लीं, आउ दू बाल तोड़ लीं, काहे कि ई भी तो नये फल हे। से साधु जी ओहिजे नेहा-फीच के गोहुम के दूगो बाल तोड़लन, आउ जाके ठाकुरजी के भोग लगा देलन।

गोहुम के गिरहथ आयल तो लठवहवन से पूछलक कि अलिए तर से कउन दूगो बाल तोड़ लेलक हे? ओहनी कहलन कि आउ तो कोई न आयल हे, बाकी साधु जी अलथुन हल। जा के उनके से पूछ। गोहुमवाला गिरहथ गेल पूछे। साधु जी गछ लेलन। ऊ कहलक कि बिना पूछले तोड़ लेले हें, से जाइत हियो राजा जी से कहे। ऊ जा के राजा जी से कह देलक। राजा बराहिल के भेजलक। ऊ साधु जी के पकड़ के ले गेल। राजा साधु जी से पूछलन कि ''बिना पूछले तूं फलना के गोहुँमा तोड़ लेलहुँ हे? से हम तोरा फाँसी के हुकुम देइत हियो!'' फिनो राजा सोचलन कि साधु के बड़का कसूर न हे, से ऊ कहलन कि ''ए साधु, हम छव महीना ला घूमे जाइत हिवऽ, से तूं हमरे हीं रहऽ आउ रानी के जे हुकुम होतो से करिहँऽ !''

राजा तो एतना कह के घूमे चल गेलन, आउ साधुजी राजे में ही रहे लगलन। रानी के मन कयलक कि तीरथ घूमे के चाहीं। रानी के एगो पाठी के मनीता उतारे के हल। रानी साधुजी के कहलन कि ''ए साधु जी, तू हमरा साथे चलऽ गंगा असनान करे!'' रानी सोरह कहार पर गंगा असनान करे चललन। साधु जी पालकी के पीछे-पीछे पठरू टँगले चललन। रस्ता में चलते-चलते रानी कहलन कि ''ए साधु जी, लावऽ पठरुआ के पलकिये पर रख ले हियो!'' साधु जी पठरू के दे देलन।

रानी पठरू के गोदी में बइठा लेलन। कुछ दूर गेला के बाद पठरूआ उनकर गोदिये में हग-मूत देलक। रानी ई देख के पालकी रोके ला कहलन, आउ साधु जी पर बड़ी खिसि अयलन कि 'तूं सब कपड़ा खराब करा देला, से राजा के आवे दऽ, हम सब कह देबो कि एतना कीमती कपड़ा साधुजी खराब करा देलन हे !'' रानी नेटलका कपड़ा पेटी में बंद कर देलन आउ दूसर पेन्ह लेलन। पालकी आगे जाइत हल कि साधु जी चार-पाँच कोस के बाद पतरा देखऽ हथ, तो पावऽ हथ कि ई समय गंगा असनान के बढ़िया फल हे। साधु जी कहार के पालकी रखे कहलन। कहार पालकी रख देलक। ओती पड़ी गबड़ा में पानी हल। साधु जी रानी के कहलन कि ''एकरे में नेहा लऽ। एही घड़ी गंगा-असनान के फल हवऽ। फेन गंगा-असनान करे के कोई फल न होतो!'' रानी तो तो पूरा सौखीन हलन, आउ सुन्नर भी हलन, ओकरा पर हरिअर रंग के साड़ी पहिनले हलन।

रानी कहलन कि ''एही सुअरबोरवा में नेहाय अयली हे। हम एकरा में नऽ नेहयबो !'' साधु जी कहलन कि फिनो बाद में नेहाय के कोई फल नऽ हे। से साधु जी रानी के बरिआरी पकड़ के ओही गबड़वा में चभाक दिन नहा देलन । रानी के देह-मुँह, लूगा-फाटा कादो-पानी से एकदम लेट गेल। रानी तो जर के खाख हो गेलन। कहलन कि ''ठहरऽ साधु जी, तोरा बिना राजा से फाँसी दिलौले न छोड़बो!'' एतना कह के ऊ नेटलकन कपड़वा के बदल के दोसर कपड़ा पहन लेलन। नेटलकन कपड़वा के पौती में बंद कर के रख देलन। कहार के घरे ले चले कहलन। कहार हुअईं से घरे लौट गेलन। रानी घरे आन के नेलटलकन कपड़ा राजा के देखवे ला पौती में बन्दे छोड़ देलन।

जब छव महीना बीत गेल तो राजा सगरो से घूम के अयलन। घरे अयते रानी राजा के झंझोट देलन, आउ कहलन कि ''अइसन नोकर रख के गेलऽ हल, से हम्मर सब इज्जत ले लेलक!'' राजा पूछलन कि ''का बात हे? से कहऽ तऽ हम साधु जी से पूछम!'' रानी कहलन कि ''अइसे हम न कहबो!'' साधु जी के बोलावऽ, तऽ हम कहबो, आउ देखैबो कि साधु जी का कयलको हे'’। राजा साधु जी के बोलौलन। साधु जी भी आ गेलन। रानी कहे लगलन कि ''देख हमऽ पौती में कपड़ा रखले हियो। ओकर का बिद्दत हे? हम तीरथ करे जाइत हली, तो पठरू से हगा-मुता के कपड़ा खराब करा देलथुन हे। तोरा विसवास न हवऽ तो देखा दे हिवऽ!'' राजा कहलन कि ''देखबऽ, अइसन बात होत तो तुरंत हम साधु जी के फाँसी दे देम !''

रानी पौती खोल के पठरूआवाला हगलाह कपड़वा निकाललन, तो देख हे कि कपड़ा में एको दाग न हे! ई देख के राजा कहलन कि ''कहाँ जरिको लेटल हवऽ?'’ एकरा पर रानी कहलन कि ''जब हम तीरथ जाइत हलियो, तब बरियारी एगो सुअरबोरवा गबड़ा में हमरा साधु जी पकड़ के लेटा देलथुन हले। से देखऽ हम ऊ कपड़ा निकाल के देखा दे हियो !'' रानी ऊ साड़ी निकाललक तो अइसन लगऽ हल जइसे तुरत धोबी के धोआवल आयल हे ! रानी तो देख के गुम्म हो गेलन।

एकरा पर राजा कहलन कि साधु जी बड़ी सच्चा अदमी हवऽ। इनका तो खाली ठाकुरजी के सेवा के आउ भोग लगावे के अलावे कोई दोसर काम न हवऽ। एतना कह के राजा कहलन कि तूं झूठ-मूठ के लुतरी लगा के साधु जी के बदनाम करे ला चाहऽ हलऽ! ई सब सोच के राजा के बड़ी गोस्सा भेल । ऊ रानी के फाँसी दे देबे ला नोकर के कहलन! आउ साधु जी के मोती-असरफी दे के राजा आदर के साथ बिदा कर देलन। साधु जी राजा से रानी के माफी मँगा के छिमा करा देलन, आउ फिनो अप्पन मंदिर में आन के ठाकुरजी के पूजा आउ राम भजन करे लगलन। खिस्सा खतम !