राजकुमार आउ मयनावती रानी

अलौकिक चमत्‍कार कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

Tags: kingdom, magic, adventure, love, jealousy

The story follows a king who, after learning he is to marry Mayanavati, embarks on a quest to find her, determined to not return until they are wed. Along his journey, he encounters a python, whom he frees in exchange for a magical item that aids him. With the help of a sage, he acquires another magical item that allows him to transform into a parrot to reach Mayanavati. They enjoy their time together but must keep their relationship secret from the king's first wife.

When they finally arrive at the kingdom, complications arise due to the first wife's jealousy and the interference of a thief and his daughter. However, through cleverness and collaboration, the king, Mayanavati, and his first wife outwit their adversaries. Ultimately, they reclaim control of the kingdom, ensuring prosperity under their united reign.

एगो कोई राजा हलन । राजा रोसगदी करा के जब अप्पन राजमहल में अयलन आउ महल में सूते लागी गेलन तो पलंग पर जइसहीं एक लात रखइत हथ कि रानी ठठा के हँस देलक। तुरत राजा अप्पन गोड़ पलंग से भुइयाँ पर रख देलन आउ रानी से पूछलन कि तूं का बात ला हँसलऽ हे? सेकर कारण बतलावऽ । रानी कहलक कि हम अइसहीं हँसली हेय, कुछो बात नऽ हे। राजा कहलन कि एमें जरूर कोई बात हे। रानी एकरे पर कहलक कि जा नऽ तोरा तो मयनावती से बिआह होइत हवऽ। एतना सुन के राजा तुरंत घोड़ा के अस्तबल में गेलन आउ खोल के घोड़ा पर सवार हो गेलन। उहवाँ से मयनावती रानी के खोजे ला चल देलन । कहलन कि जब तक हम मयनावती रानी से बिआह नऽ करब, तब तक राज में नऽ लौटब ।

जाइत-जाइत राजा एगो भारी जंगल में पहुँच गेलन, तो देखइत हथ कि एगो कुटिया बनल हे। ओही जगह पर पक्का के एगो कुआँ हे। ओकरा पर बाल्टी-डोरी रखल हे । राजा के जोर से पिआस लगल हल। जब बाल्टी-डोरी कुआँ में डाललन आउ पानी घींचे ला गयलन तो घिचयबे ना करे। एही तरह से राजा के डोरी-बाल्टी धयले-धयले साँझ से भोर हो गेल तो कुआँ में देखइत हथ कि एगो बड़ा भारी अजगर साँप बाल्टी के पकड़ले हे। जब दूनों के नजर मिलल तइसहीं सरप कहलक कि हमरा निकाल दऽ तो तोरा हम काटब-ऊटब नऽ आउ इनाम में एगो चीज देव। जब राजा अजगर के निकाल देलन, तो अजगर अप्पन कुटिया में ले गेल आउ कहलक कि हमरा से तूं बरदान माँगऽ। राजा कहलन कि हमरा कोई चीज के कमी न हेय । बाकि हमरा मयनावती से बिआह करा दे । अजगर कहलन कि इहाँ से कुछ दूर पर एगो आउ जंगल मिलतव। ओही जंगल में एगो साधु तपस्या करइत हथ। उनकर सरीर में दीआं लगल होतवऽ । उनकर अँगाड़ी में जा के खाड़ा हो जइहँऽ, तो उनकर ध्यान टूट जायत। फिन जउन चीज माँगे लागी होतवऽ तउन चीज माँग लीहऽ। अजगर एकरा बाद राजा के अप्पन जाँघ चिरववलक आउ ओही में अप्पन मुँह से मणि उगिल देलक। फिनो एगो जड़ी से रगड़ देलक तो जाँघ जइसन हल ओइसने हो गेल। अजगर कहलक कि एकरा से जउन चीज माँगवऽ ओही चीज मिल जतवऽ आउ जड़ दे देलक।

एकरा बाद राजा अजगर से बिदा लेके साधु के खोजे ला चललन । जाइत-जाइत ओही जंगल में पहुँचलन, जहवाँ पर साधुजी रह हलन। जा के साधु जी के अँगाड़ी में हो गेलन। जब साधु जी के ध्यान टूटल तो कहलन कि बरदान माँगो बच्चा ! साधु जी के तीन-चार बेर कहला पर राजा बोललन कि हमरा मयनावती से बिआह करवा दीहीं। हमरा धन-दौलत के काम न हे । साधु जी एगो जड़ी देलन आउ कहलन कि एकरा अप्पन कान में डाल लेवें, तो सुग्गा हो जयवें आउ निकाल लेवें, तो अदमी बन जयवें। एकरा बाद मयनावती के पता बता देलन । राजा सुग्गा बन के मयनावती के झरोखा के राह से चल गेलन । उहवाँ जाके ऊ अप्पन कान से जड़ी निकाल देलन, तइसहीं ऊ अदमी हो गेलन ।

मैनावती आउ राजा, दूनो रात भर अराम कैलन। एही तरह दुनहुन कई रोज ला रहलन। एक दिन मयनावती कहलक कि अइसे चुपेचापे रहे से ठीक न होयत। तू अप्पन राज में ले चलऽ । उहाँ बढ़िया होयत । राजा-रानी दूनो सुग्गा-सुग्गी के रूप बनौलन आउ रानी राजा के पीठ पर उड़के बइठ गेलन । राजा उड़ चललन। उड़इत-उड़इत साधु जी के भिरू पहुँचलन तऽ राजा जड़ी निकाले ला ज्ञान भूल गेलन। से ऊ अदमी के सकल में न होयलन आउ साधुओ जी के पास अब असली जड़ी न हल।

फिन दूनो उहाँ से उड़इत-उड़इत अजगर सरप भीर चल अयलन, तो अजगर कहलक कि तोरा पास हम मनी काहे ला देली हल? ओकरा से जउन काम लेतऽ हल ओही काम ऊ कर देतवऽ हल। अजगर झटपट जाँघ के पास जड़ी रगड़ देलक आउ मनी निकल आयल आउ दूनो के अदमी के रूप बना देलक । साँझ हो गेल हल । अजगर दूनों के ठहरे ला कहलक बाकि ओहनी न ठहर सकलन। घोड़ा पर चढ़के दूनो चल देलन।

रस्ता में एगो ठग लग गेल। राजा-रानी एगो सहर में पहुँचलन आउ रानी से कहलन कि हम घोड़ा के दाना आउ भोजन लागि जाइत हिवऽ, तब तक तू एहीजे रहिहऽ । राजा दाना-चारा तउला के दाम देलन, ओहिजे ऊ सब छोड़ देलन आउ कहलन कि हम आवऽ हिय तब ले जायब। फिन भोजन के समान खरीद के ओहिजे छोड़ देलन। पान लेवे पनेरिन भीर पहुँचलन तो राजा के सूरत देख के पनेरिन मोहित हो गेल। पनेरिन राजा के जादू से घोड़ा बना के घरे बान्ह देलक।

रानी एने अहर देखइत हथ, पहर देखइत हथ, जब बड़ी देरी हो गेल तब चले ला तैयार भेलन। एही बीच ओही ठग आ के रानी के बरियारी लिया चलल। रानी कहलन कि तू आगे-आगे चलबऽ तब नऽ ठीक होयत। हम आगे-आगे चलब तो लोग बहिन समझतथुन, पर अब तो हम तोर जनाना हो गेली हे। एतना सुन के ठगवा फूल के तुम्मा हो गेल आउ लापरवाही से आगे-आगे चले लगल। तब तक रानी पीछे से अप्पन तलवार निकाल के ठग के मार देलन ।

फिन उहाँ से रानी मयनावती मरदाना के भेस बना के राजा के खोजे सहर में निकललन। उहाँ के राजा सोयंवर रचवले हलन कि जउन लड़का उड़इत तिलंगी के पकड़ लावत ओकरे से हम अपन बेटी के बिआह कर देव आउ समूचे राजपाट भी ओकरे दे देब। मयनावती अप्पन घोड़ा के चार कोड़ा नरम, आउ चार कोड़ा गरम मारलक तो घोड़ा अकास में जाके तिलंगी के पकड़ लेलक। फिन चार कोड़ा गरम आउ चार कोड़ा नरम मारलक तब नीचे चल आयल। राजा अपन बेटी के पुरुखधारी मयनावती से विआह कर देलन। जब कोहबर मिलल, तब मयनावती पलंग के बीच में तलवार रख देलक आउ दूनो पलंग के एक-एक पटिया पर सुतलन। राजा के दमाद मयनावती कहलन कि हमरा हीं के चाल हे कि जब तक रोसगद्दी करा के न ले जाय तब तक मरद-औरत एक साथे न सूते। मयनावती जादू जाने में माहिर हल। से ऊ जान गेल हल कि पनेरनिया हमर राजा के भेंड़ा बना के बान्हले हेय। इहाँ राजा के कोई लड़का न हल से सब राज-पाट मयनावतिये के हो गेल हल।

जब राजा के दमाद मयनावती राजगद्दी पर बइठल तो परजा के बोला के सब मलगुजारी माफ कर देलक। एकरा बाद जब कुछ दिन बीतल तो राजा फिनो सब परजा के बोलौलन कि सब लोग अप्पन-अप्पन बैल-गोरू आउ सब कुछ के गिनती करा लऽ। सबे अप्पन-अप्पन जनावर के गिनती करा लेलन, तब सब कहलन कि पनेरनिया अपन जनावर के गिनती न करौलक है। पनेरनिया के बोलावल गेल। पनेरिन अपन भेंड़ा के साथे आयल तो राजा के दमाद कहलन- अगे पनेरिन, जल्दी से ई भेंड़ा के अदमी बनावऽ न तो हम जान से मार देबऊ। डरे पनेरिन भेंड़ा से अदमी बना देलक। एकरा बाद पनेरिन के गड़हा भरवा देलन, आउ राजा से सबहे हाल कहलन। एकरा बाद राजा मयनावती अप्पन ससुर से कहलन कि हम अप्पन देस से लौट के आयब तो रोसगद्दी करा के ले जायब। राजा हुकुम दे देलन।

एकरा बाद मयनावती आउ उनकर मरदाना राजा दूनो घोड़ा पर चढ़के चललन। दूनो के जाइत-जाइत एक जगुन साँझ हो गेल तो अनजाने में एगो ठग हीं ठहर गेलन। घर में सास, पतोह आउ बेटी हलन। ठग कहीं ठगी करे चल गेलन हल। रात में राजा-रानी के खूब सोआगत कैल गेल, बाकि सूते ला अलगे-अलगे कोठरी देल गेल। जब आधा रात भेल तब ठग के बेटी तलवार लेके राजा के कोठरी में घुसल आउ छाती पर चढ़ के जान से मारे लागि तइयार हो गेल। राजा ठग के बेटी के फुसलावे लगलन। मनावइत-फुसलावइत जब ऊ मान गेल तो ठग के बेटी कहलक- हमर बाप-भाई के दूगो साँढ़िनी हेय। एगो अस्सी कोस भागऽ हे, आउ एगो साठ कोस भागे ओली हे। जाके खोल के ले आवऽ। हमनी तीनो इहाँ से भाग चलब । राजा साँढ़नी के पास गेलन तो चिन्हे में ना आयल आउ साठ कोस चले ओली साँढ़नी के खोल के लवलन। ओही साँढ़नी पर तीनो चढ़के भाग चललन।

जब ठग लोग अयलन तो सास-पुतोह कहलन कि दूगो अइसन मोसाफिर आयल हल, जेकरा से हमनी बइठल खइती हल। सुन के ठग खयवो-पीबो न कैलक आउ तुरंत साँढ़िनी के मंगौलक, तो देखलक कि अस्सी कोस दउगेवाली साँढ़िनी बचइत हे। दूनो ठग साँढ़िनी पर चढ़के दउगलन आउ थोड़ ही दूर जाके ओहनी के पीछा कर लेलन। जब ठग के बेटी पीछे घुरके देखलक तो भाई-बाप ओहनी के पीछा कर रहलन हल । ऊ राजा से कहलक कि अपने दूनो एही बड़ के पेड़ पर चढ़ जायब, आउ हम नीचे बइठ के रोयब कि नतिया छौड़ा पुत्ता हमरा भगवले जाइत हे भइया! फिन हम अस्सी कोस दउगेवाली साँढनी एही बरोह तर लगवले रहब। जब भाई-बाप पेड़ पर चढ़ जयतन तब तोहनी दूनो अस्सी कोस वाली साँढ़नी पर उतर जइहँ आउ हमनी तीनो कोई भाग चलब।

जब ठग भिरू पहुँच गेलन तो राजा आउ रानी पेड़ पर चढ़ गेलन। एने ठग के बेटी कहे लगल कि देख न भइया, नतिया हमरा बरिआरी भगवले जाइत हवऽ। से लावा सँढ़िनियाँ थमले रहिवऽ। तोहनी दूनो पेड़ पर चढ़के पकड़ लिहँ, नतिया जयते कहाँ?
दूनो ठग जब पेड़ पर चढ़ गेलन तो राजा-रानी ओही बरोह से अस्सी कोस वाली साँढ़नी पर उतर गेलन आउ तीनों भाग चललन। ठगवन अछता-पछता के लउट गेलन कि हमर बहिनिये हमनी के ठगलक।

एने भागइत-भागइत राजा अप्पन राज में पहुँच गेलन । उहाँ जाके राजा दूनो औरत के एकही कोठरी में रख के राजमहल में गेलन। महल में जाके अप्पन जाँघ से मनि निकाल के दिरखा पर रख देलन जेकरा से कोठरी सगरो इंजोर रहऽ हल। राजा के पहिलकी औरत खजांची से फँसल हलन। एक दिन राजा दरबार में हलन, तइसहीं खजांची उनकर औरत भीर गेल, तो दिरखा पर मनी के बरइत देखलक। ऊ पूछलक कि ई का हवऽ बरइत रानी? अतो राजा कने से तो लान के रख देले हथिन। खजांची कहलन कि ई पथरवा हमरा दे दऽ। रानी दिरखा से उठा के दे देलन। जब राजा महल में अयलन आउ मनि ना देखलन तो हाय मनि, हाय मनि, कहके चिल्लाय लगलन। रानी साथ रहते-रहते खेयाल भुला गेलन हल। राजा अप्पन बेटा के पगलायल समझ के बड़ा दुखी होलन।

इधर जब ठग के बेटी सुनलक कि राजा उहवाँ मनि के कारन पगला गेलन हे, तो अपने पनेरिन बन के पान बेचे खातिर ओही राजदरबार के राह से कहइत जाइत हल कि ले पान, ले पान! एतना सुन के बराहिल आयल आउ पूछलक कि कइसे खिल्ली पान हउ गे पनेरिन? पनेरिन कहलक कि सौ रुपये खिल्ली । तुरंत एक खिल्ली पान ले के सौ रुपया दे देलक आउ पूछलक कि आउ का देवे? तो पनेरिन कहलक कि साँझ के अन्हार भेला आ जायब। एकरा बाद गोमस्ता आयल तो अइसेहीं पूछलक तो पनेरिन कहलक कि दू सौ रुपये खिल्ली। झटपट दू सौ रुपया दे के दू खिल्ली पान खा लेलक, तब पनेरिन कहलक अपने साँझ के अन्हार भेला के एक घंटा बाद आ जायब। एकरा बाद खजांची अयलन तो ओभी एही तरी पूछलन। पनेरिन सौ रुपये खिल्ली पान के दाम बढ़वते जा हल। खजांची कहलन कि हमरा पास एगो पत्थर हेय। पनेरिन तुरत पत्थर लेके पान दे देलक। ये ही तरह मनेजर, बूढ़ा राजा, सब ढेर लोग आन के पान खयलन आउ पनेरिन सबहे के एक-एक घंटा बाद रात खानी बोलौलक।

फिनो ठग के बेटी अपन मरद राजा के बोला के मनि दे देलक, आउ अप्पन सब हाल कह सुनौलक। फिन उनका उहईं एगो कोठरी में रहे के अलगे इंतजाम कर देलक। रात के अन्हारा में बराहिल पहुँचल तो खखन में गोमस्ता भी तुरते गेलन। डरे बराहिल थरथराय लगल तो ठग के बेटी झटपट ओकरा चटाई में लपेट के लुका देलक। एकरा बाद खजांची अयलन तो गोमस्ता डर गेलन आउ कहलन कि कने जाऊँ? ठग के बेटी झटपट उनकर देह में कारिख पोत देलक आउ सोझे खड़ा करके उनकर कपार पर दीया बार देलक आउ कहलक कि हिल-डोल मत करिहँऽ, न तो दीया बुझा जायत, आउ सबे पोल खुल जतवऽ। अइसहीं पारा-पारी सबहे मनेजर आउ राजा के बाप भी अयलन। ठग के मरद राजा सबहे के देखलन आउ देख के चुपचाप रह गेलन। सबेरे उठत सब के बोलाके खादे-भूसे भरवा देलन । साथे-साथे अप्पन पहिलकी अउरत आउ बेभिचारी बाप के भी भरवा देलन। एकरा बाद मयनावती रानी आउ ठग के बेटी के साथ मिल-जुल के ऊ रहे लगलन आउ राज-पाट करे लगलन।

See translation

Once upon a time, there was a king who, after a long day of royal duties, returned to his palace and went to bed. As he was settling down on his bed, the queen burst out laughing, which puzzled him. The king placed his foot on the ground and asked the queen why she was laughing. The queen replied that she was just laughing without any particular reason. The king insisted that there must be a reason behind her laughter. The queen then revealed that he was to marry Mayanavati. Hearing this, the king immediately went to the stables, mounted his horse, and set out to find Mayanavati, declaring that he would not return to his kingdom until he had married her.

On his journey, the king came across a dense forest and noticed a hut with a well nearby. He was very thirsty and attempted to draw water from the well. After struggling for a long time, he finally succeeded but discovered that a large python had grasped his bucket. When their eyes met, the python promised to spare him in exchange for his freedom and offered him a reward. Once the king freed the python, it took him to its hut and instructed him to ask for a boon. The king replied that he lacked nothing but wanted to marry Mayanavati. The python told him that there was a sage nearby who could help him. It gave the king a magical item that would transform his appearance depending on how it was used.

With the new knowledge, the king set off to find the sage and, upon meeting him, requested to marry Mayanavati. The sage provided him with another magical item that, when placed in his ear, would turn him into a parrot and back into a man at will. The king used this transformation to reach Mayanavati, who was waiting for him.

Mayanavati and the king spent many happy days together. However, one day she suggested that they should go to his kingdom, so he could properly introduce her as his queen. To maintain discretion, they transformed into a parrot and a female parrot and flew towards his kingdom. On their way, they came across a thief who tried to deceive them, but Mayanavati demonstrated her cleverness and defeated him.

Upon reaching the kingdom, the king secured their chambers together and placed a magical stone that would ensure the safety of their secret. However, the king's first wife learned of the situation and, concerned, began to create mischief. Meanwhile, the thief's daughter disguised herself and began selling pan (betel leaf) outside the palace. Through her tricks, she managed to create more confusion.

Eventually, she returned to her husband, the king, and revealed the truth of the situation. Together, with the king's first wife, they devised a plan to reclaim the kingdom from the meddling forces of the thief. By uniting and cleverly implementing their strategies, they finally secured their position, and the kingdom prospered once more under the rightful reign of the king and Mayanavati, who managed to outsmart their adversaries.