Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह
Tags: merchant, ruby, transformation, adventure, fairies
The story follows a wealthy merchant who loses everything due to a calamity and is forced to sell firewood to survive. While in the forest, he unknowingly brings back a valuable ruby instead of a stone. After multiple transactions lead to confusion in the marketplace, the ruby is claimed by the king, who later finds it missing from the queen’s chest. Instead, a young boy is found in its place, revealed to be the queen's daughter's fiancé. After the boy transforms into a serpent and ultimately dives into a pond, the king offers half his kingdom for his return.An old goldsmith takes on this challenge and discovers the boy celebrating with fairies and Lord Indra in the pond. With the help of the princesses, he captures the boy after a night of festivities where he is fed marijuana, hindering his musical performance. This displeases Lord Indra, who reluctantly gives the boy back. The story concludes with the boy and the princesses returning to their kingdom, where they live happily ever after.
एक मुलुक में एगो धनी-मानी सौदागर रहऽ हलन। कुछ दिन के बाद ओकरा पर अइसन विपति पड़ल कि सब धन-जन बरबाद हो गेल । ऊ अन्न-अन्न के बिना तरसे लगल। से ऊ रोज जंगल से लकड़ी काटे आउ बेच के दूनो परानी कइसहूँ गुजर-बसर करे । एक रोज मेहरारू से कहलक कि सीधा में से एक-एक मुट्ठी रोज निकाल के थोड़े चबेनी भूँज दिहँऽ, जंगल में लेले जायब, बड़ी भूख लग जा हे । चबेनी फाँक लेब तो दू बोझा लकड़ी काट के ले आयब।
सौदागर चबेनी लेके जंगल में गेल । उहाँ लकड़ी काट के दू बोझा बान्ह देलक आउ पानी पीये खातिर पोखरा पर गेल। पानी पी के आयल तो देखइत हे कि एगो बड़का गो सरप बोझवा पर बइठल हे । बड़ी छौ-पाँच कैलक आउ असमंजस में पड़ गेल कि अब का करीं, आज एको पइसा आमदनी न होयते? खूब सोच-विचार के घरे से एगो बड़का गो बाँस ले गेल आउ अलग ही से हूरे ला सोचलक बाकि ओकरा आवे के पहिलहीं सरप एगो लाल उगिल के भाग गेल हल। भिरी आन के देखलक तो सरप न हे, तो बोझा बान्हलक आउ लाल के समझलक कि एगो पत्थल हे। धन गेला पर बुद्धि भी चल जा हे । से ऊ लाल के पत्थल समझके लकड़ी साथे बजार में बेचे ला ले गेल ।
रोज लकड़ी खरीदे ओला बेपारी आज दोगुना दाम देके लकड़ी खरीद लेलक। फिनो ऊ कहलक कि हमरा पास एगो पत्थल हे, एकरा से दू-चार चिलीम तम्बाकू पीये ला दे दऽ । सेठ पत्थल देख के कहलक कि ई पत्थल न हे, ई लाल हे । एकर दाम हम पन्दरह हजार देब। सौदागर राजी हो गेल। दोकान पर बड़ी भीड़ हल सेकरा से काफी देर हो गेल । उकता के सौदागर दूसर दोकान पर चल गेल। दोसर सेठ से लाल देखौलक तो ऊ कहलक कि हम एकरा पचीस हजार रुपेया देबो। सौदागर राजी हो गेल। ऊ पच्चीस हजार रुपया घरे लान के बकसा में रख देलक।
एकरा बाद पहिलका सेठ लाल खरीदे ओला सेठ से झगड़े लगल । बात राजा तक पहुँचल आउ राजा तीनो के बोलौलक । पहिले सौदागर से पूछलक कि तू लाल बेचलऽ हे? सौदागर कहलक कि हमरा पास एगो पत्थल हल। हम ई सेठ से कहली कि हमरा तम्बाकू पीये ला दू चिलीम देके पत्थल लेले, तो ई कहलन कि हम एकरा पनरह हजार देबो । इनका भिरू भीड़ हल से हम दूसर सेठ भीर गेली, तो हमरा पचीस हजार देके ऊ पत्थल ले लेलन। राजा ई सब बात सुन के कहलन कि केकरो कसूर न हे। लाल दूनो सेठ में से केकरो के पास न रहत । लाल राजा के खजाना में जमा हो जायत। राजा सेठजी के पचीस हजार रुपेया लौटा देलन । राजा लाल लेके रानी के दे देलन। कहलन कि लाल के बढ़िया से रख दिहँ भुलाय के न चाहीं । अगर भुला गेल तो तोर जान के बराइत न होयत ।
रानी लाल के पेटी में बन्द कर देलन। कुछ दिन बीतल तो राजा सिपाही से लाल देखे खातिर कहलन कि जा के रानी से लाल माँग लावऽ । सिपाही रानी से लाल माँगलक तो रानी बक्सा खोल के देखइत हथ तो लाल नऽ हे, आउ ओकरा जगह पर एगो लइका गोड़ पटक-पटक के खेलइत हे। तुरंत रानी बक्सा बन्द कर देलन आउ सिपाही से कहलन कि राजा से कह दऽ कि रानी से ताला न खुलइत हे। एही से अपने ही के बोलावइत हथ । सिपाही जा के राजा से कहलक तब राजा घरे आन के बक्सा खोललन, तो देख के बड़ा अचरज भेल । तब राजा रानी से कहलन कि ठीक हे, हमर लड़की हीरा हे, एकरे से हम ओकर सादी कर देब। तू एकरा कभी भी अप्पन दूध नऽ पिअइहऽ ।
बक्सा ओला लइका बड़ी तेजी से बढ़े लगल, आउ कुछ बड़ा हो गेल तो ओकर नाम लाल रखल गेल। ऊ गाय के दूध पी के जल्दीये बड़ा हो गेल, तो लाल आउ हीरा (राजा के बेटी) दूनो पढ़े ला पठशाला में भेज देल गेलऽ । साथै पढ़इत-पढ़इत दूनो में काफी परेम हो गेल। एहनी के देख के गुरु जी राजा से सब बात कहलन । राजा के दूनों के पढ़े ला अलग-अलग पठशाला बनववलन । अब दूनों अलग-अलग पढ़े लगलन बाकि परेम ना छूटल ।
एक दिन दूनों विचार कयलन कि अब हमनी के दूसरे राज में चले के चाहीं । इहाँ ठीक न होइत है। हीरा मरदानी चेहरा बना लेलक आउ लाल के साथ घोड़ा पर चढ़ के राते में चल देलक । जाइत- जाइत कुछ दूर गेल तो लाल के पिआस लगल । हीरा घोड़े पर से देखलक तो कुछ दूर पर चील्ह मँडराइत हल। दूनो घोड़ा ठोकलन आउ एँड़ी दबोचलन । घोड़ा तुरंत उहाँ पहुँच गेल जहाँ पर एगो इनार हल । इनार में जइसहीं पानी खातिर लोटा डोरी लटकौलन तइसहीं पानी पताल में जाय लगल, आउ अन्त में पानी एक दमे सूख गेल आउ कुइयाँ ठठा के हँसलक । एकरा पर लाल बोलल कि का बात हे भाई? हमनी पिआसे मरइत ही आउ तू पताल सूख गेलऽ, आउ बड़ी जोर से हँसतो हऽ । एतना सुन के कुइयाँ बोलल कि इन्दरा ठग के जादू से बनल हे। ईसे तू पानी इहाँ मत पीअऽ। तू आगे कहीं पर पानी पी लीहऽ ।
ओहिजा से दूनों घोड़ा ठोकलन आउ तेजी से चल देलन । संयोग से ओही ठग के दुरा पर पहुँच गेलन । ठग के सात गो बेटा हलन। सातो के सात गो अउरत हल । ठग के एगो बेटी हल । ऊ घड़ी घरे खाली दूगो बूढा-बूढ़ी हलन। सभे ठग ठगी करे चल गेलन हल । सातो अउरत आउ दूनो माय-बेटी घरे पर रह हलन। ऊ सब भी ठगे लागी राही-मोसाफिर के आगत स्वागत करके ठहरावऽ हलन। रात होला पर जान मार के सब-धन दौलत छीन ले हलन। दिन के एहनी के एही सब कार-बार हल।
हीरा आउ लाल जब ओहनी के दुरा पर पहुँचलन तो उनका कहवाँ उठाऊँ, कहवाँ बइठाऊँ, कसके खूब स्वागत भेल । दूनों के खूब गुल-गुल बिछौना देल गेल। से ओकरा पर पड़तहीं ओहनी के नीन आ गेल । तब तक सातो ठगिन जहर मिला के रोटी बनावे लगलन। ई सबके हाल देख के ठग के बहिन के ओहनी के सूरत देख के दया आ गेल। ऊ जा के दूनो के सिरहना खड़ा होके रोवे लगल। रोआई सुन के दूनो के नीन टूट गेल, तो ऊ सब हाल कह देलक। सुन के तुरते दूनो घोड़ा पर चढ़लन आउ तेजी से भाग गेलन। जब रोटी बना के ठगिनिया देखे आयल तो दूनो के न देखके लड़की के खूब डाँटे-फटकारे लगल। तूहीं राँड़ी, भगा देले हें। कुछ देर के बाद सबहे ठग अयलन तो ठगनियन कहकई कि आज जिनगी भर के बइठ के खाय ओलन माल आयल हल बाकि ऊ हमनी के पंजा से निकल गेल। ई सब सुन के ठग अप्पन साठ कोस आउ अस्सी कोस चले ओलन साँढ़नी पर चढ़के दउड़लन।
जाइत-जाइत दूनो के पीछा कर लेलन। दूनो घूर के देखलन तो सोचलन कि अब हमनी के जान न बचत । दूनों अइसने सोचइत हलन कि एगो गाँव लौकल । जोर से घोड़ा के ऍड़ लगौलन आउ राजा के दरबार में पहुँच गेलन। जाके राजा से कहलन कि हमरा किराया पर रहे खातिर कोठरी दे दीहीं । जेतना पइसा लेवे के होयत, ले लेब, हमनी छ सात महीना ला रहब। राजा कहलन कि हमरा एक महल हे, जेकरा में पोखरा, पखाना, जरूरत के सबहे भंडार के चीज हे। बाहर निकले के भी जरूरत नऽ हे। राजा कहलन कि एक हजार किराया लगतवऽ । लाल साहब एक हजार दे देलन आउ तुरत महल में घुस के केबाड़ बंद करके रहे लगलन ।
इधरो आठो ठग भी राजा के पास आ के किराया के कोठरी माँगे लगलन। राजा कहलन कि हम एतना कोठरी बना के रखले ही कि सबहे के दीहीं । अबहिये नऽ दूगो अदमी के देले ही । ठग सब समझ गेल आउ किराया के कोठरी के चारो तरफ घेर के रहे लगल कि जब कभी निकलत तो जान से मार के सब कुछ छीन लेब। कुछ दिना तक दूनों न निकललन तो ठग राजा के पास जाके कहलक कि जउन किराया पर रहइत हथ ऊ हमर दमाद हथ । बड़ी दिन बिआह करला के बाद अयबो कयलन तो रूस के भाग गेलन। इहाँ आन के किराया पर रहइत हथ । सातो लड़का बोलल कि हाँ, हमर बहनोई हथ । राजा कहलन कि हम अइसे न मानवव, जब तोर दमाद आउ बहनोई हथ, तो तोर बेटी पहचान लेत । तब हम समझब कि ठीके में तोर दमाद हथ।
तुरत ठग अप्पन बेटी के बोलौलक आउ पहचाने लागी भेजलक। लाल के पोसाक आउ रंग नियन ढेर अदमी के एक जगुन खड़ा कर देल गेल। ठग के बेटी घुरइत-घुरइत गेल आउ पहचान के हाथ पकड़ लेलक । फिन राजा कह देलन कि तोरे दमाद हे। लाल आउ हीरा ठग के लड़की के लेके किराया ओला महल में चल गेलन। ठग लोग बेटी के इसारा से समझा देलन कि इज्जत भी बच जाय आउ काम भी बन जाय । जब लाल कोठी में ठग के बेटी के लेके गेल, तो ओकर छाती पर तलवार लेके बइठ गेल आउ कहलक कि हमर कि ठग के? लड़की बोलत कि हम तोहर ही। तोहर न रहती हल, तो हम तोहर जान बचवती हल?
कुछ दिन के बाद ऊ कहलक कि अइसे काम न चलत। ठग के पास तेज दउड़ेवाली दूगो साँढ़िनी हे। से साँढ़िनी के कइसहूँ ले आवे के चाहीं । एगो साँढ़नी साठ कोस चलऽ हल, आउ दूसर साँढ़नी अस्सी कोस चलऽ हल । ऊ अस्सी कोस भागेओली साँढ़नी के लावे गेलन तो साठ कोस भागे ओलन साँढ़नी के लेले चल अयलन। ठग के बेटी के साथ साँढ़नी पर भागइत लाल बीच जंगल में जा के ओकर छाती पर सवार होके तलवार से मार देलन। मरइत खनी ऊ सराप देलक कि हमरे नियन छछनइत तोरो परान जयतो। फिनो हीरा आउ लाल दूनो घोड़ा पर भागे लगलन ।
एने सबेरे होयल तो ठग अपन घरे के केबाड़ी खोललक तो एगो साँढ़नी के न देखलक। ऊ अस्सी कोस चले ओली बचल हल। सेकरा पर सवार होके ठग लाल आउ हीरा के रपेटलक । जाइत-जाइत हीरा लाल साँढ़नी पर भागइत लौकल। एने हीरा-लाल सोचलक कि अब हमनी के पकड़ के मार देतउ, तो ओहनी दूनो पीठ में पीठ सटा के दूनो हाथे तलवार लेके खड़ा हो गेलन । जब आठो ठग भिरु आ गेलन तो दूनो दने से तलवार चले लगल । अंत में दूनों ओहनी सातो ठग के मूँड़ी काट देलन। बुढ़वा ठग बच गेल आउ गोड़-हाथ परे लगल कि हमरा मत मार, हम तोर घोड़ा के रखवाली करके जिनगी बिता लेब । तीनो साथ चललन । जब कुछ दूर गेलन तो एगो पोखरा पर नेहाय-खाय ला ठहर गेलन । ओहनी नेहा के पूजा करे ला मूँड़ी निहुरौलन तो बूढ़ा ठग झट से लाल के गरदन पर तलवार चला देलक आउ लाल के मूँड़ी कटा गेल। फिन हीरा के आन के कहलक कि ओकरा तो जान मार देलिअऊ, अब तोरो मारबऊ ! डर के मारे हीरा ओकरे साथ घोड़ा पर चढ़ के चले लगल । जाइत खानी रास्ता में हीरा अप्पन गोड़ के पयजेब गिरा देलक आउ ठग से कहलक कि उत्तर के ले आवऽ । बूढ़ा खिसिया के कहलक कि चल-चल, हमारा हीं अइसन केतना गहना हे । फिन कुछ दूर गेला पर दूसर गोड़ के पयजेब गिरा देलक आउ हीरा लावे ला कहलक। बूढ़ा फिनो खिसिया गेल। फिनो थोड़े दूर गेल तो हाथ के कंगना गिरा देलक आठ बूढ़ा ठग उठावे ला निहुरल तो हीरा तलवार से मारलक तो ओकर मूँड़ी कटके गिर गेल ।
एकरा बाद हीरा फिन ओही मंदिर पर गेलन जहाँ लाल के लास मरल परल हल । देह आउ मूँड़ी एक जगुन सटा के जार-बे-जार विलाप करे लगलन। ओकर रोआई सुन के जंगल के पेड़-बगान के पत्ता झरे लगल । चिरई बोलना बंद कर देलन । सगरो हहाकार मच गेल । एक दिन ओही रस्ता से गौरा पारवती जी आउ महादेजी सैर करे जाइत हलन। रोआई सुन के पारवती जी महादेजी से पूछलन कि जंगल में कउन दुखिया रोइत हे कि पेड़ के पतई झर गेल हे? महादेजी कहलन कि ई संसार में अनेको दुखिया हथ । केकर-केकर दुख दूर करबऽ । पारवती जी हठ करलन तो महादेजी ओनही चललन जने से रोआई आवइत हल। ओके देखलन तो सब हाल मालूम भेल। पारवतीजी हठ कर देलन कि मुरदा के तू जिला दऽ । महादेजी लड़की के (हीरा) के कहलन कि तू जा के पोखरा से एक लोटा पानी ले आवऽ । जब हीरा पानी लवलन तो महादेजी कहलन कि तू आँख मून लऽ । फिन महादेजी लाल पर पानी छिड़कलन आउ अप्पन कानी अँगुरी चीर के लाल के मुँह में टपका देलन। लाल फुरफुरा के उठलन आउ कहलन कि बड़ी जोर से नीन आ गेल हल। तब तक महादेजी आउ पारवती जी ऊपह गेलन हल । हीरा कहलन कि नीन आवे तोर मुर्दई-दुसमन के, आउ पीछे से सारा हाल कह सुनौलन ।
एकरा बाद दूनो घोड़ा पर सवार हो के चललन। जाइत-जाइत एगो दूसर राजा के राज में पहुँचलन आउ एनही डेरा डाल देलन । फिनो खाय-पीये खातिर सहर में गेलन । सहर में जा के एगो हलुआई के दोकान पर मिठाई खरीदलन। मिठाई ओहिजे छोड़के एगो पनेरी के दोकान पर पान ला गेलन । दोकान पर पनेरिन पान बेचइत हल। लाल के सूरत देख के पनेरिन मोहित हो गेल । ऊ पान में जादू भर के खिया देलक तो लाल पान खायते भेंड़ा बन गेलन । पनेरिन झटपट भेंड़ा के गरदन में रस्सी बाँध के खूँटा में कस देलक ।
हीरा इहाँ अहर देखइत हथ पहर देखइत हथ आउ आखिर में बड़ी देर हो गेला पर मरदानी भेस बना के चललन । जब ओही हलुआई के दोकान पर पहुँचलन तो हलुआई कहलक कि मिठाई ले जाउ बाबू ! तउल के ढेर-सा रखल हे। हीरा समझ गेल आउ कहलक कि ओने से आवइत ही तब ले जायब। सगरो बजार में खोजलक तो कहऊँ पता न चलल। तब फिन ओही पनेरिन के दोकान पर पान खाय गेल । पनेरिन के देखते हीरा समझ गेल कि हो न हो, इहे पनेरिन के करमात हे । ऊ उहवाँ से चुपचाप चल अयलन आउ पता लगावे खातिर घोड़ा पर चढ़के घूमे लगलन । रोज सहर में चार-पाँच बेरा चक्कर लगावे लगलन।
एक दिन उहाँ के राजा के लड़की ओकर लड़का के भेष में हीरा के सूरत देख के मोहित हो गेल । ऊ अप्पन माय से कहलक कि जब हम सादी करब तो ईहे लड़का से करब । राजा से रानी कहलन। राजा लड़का के बोला के बिआह करे ला पूछलन तो लड़का (हीरा) कहलक कि हमर देस में तलवार से सेनूर देवे के रेवाज हे। राजा ई रेवाज के पालन करे ला तइयार हो गेलन । राजा के लड़की से हीरा के बिआह हो गेल तो कोहबर में हीरा पलंग पर चारो हाथ-गोड़ पसार के सूत गेलन । लड़की आ के देखलक आउ सोचलक कि इनका एतना गुमान हे, तऽ हम का कम ही? ओहू भुइयाँ में बिछा के सूत गेल।
दूसर दिन राजा से हीरा कहलन कि हम नोकरी करब । राजा सुनके सरमा गेलन कि हमर दमाद होके तू नोकरी करब? तोरे सब राज-पाट हवऽ । दमाद जब हठ कयलन तो राजा हुकुम दे देलन। ऊ दिन दमाद सारा सहर में डुग्गी पिटवा देलन कि कोई
भी अदमी आठ बजे रात के बाद से घर से बाहर न निकले। जउन घरे से निकलत ओकरा फाँसी दे देल जायत । हम रातोभर समूचे सहर में पहरा देब । राजा के दमाद सहर में पहरा देबे लगलन । ई तरी जब सतवाँ दिन बीतल तो एगो लड़का पखाना करे ला बाहर निकलल । ओकरा पर राजा के दमाद के नजर पड़ गेल। राजा जोर से खिसिआयलन। सबेरे लइकवा बोलल कि हमरा अबरका पर बाघ बनइत हऽ आउ पनेरनियाँ रोजे रात के रात भेंड़ा चरावे हे, सेकरा पर न खिसिआथ? राजा के दमाद धड़धड़ायल पान खाय के बहाने पनेरनियाँ के घरे घुस गेलन । जाके देखलन कि एगो भेंड़ा बान्हल हे । राजा के दमाद तलवार खींच के पूछलन कि ई भेंड़ा कइसन हे? पनेरिन सीधे हाथ जोड़ के गोड़ पर गिर गेल आउ कहलक कि ई भेंड़ा न हे बाबू, ई अदमी हे। राजा के दमाद कहलन कि तुरत अदमी बनावऽ। पनेरिन तुरंत उलटी सरसों पढ़के मारलक तो ऊ भेंड़ा से अदमी बन गेल। जब अदमी बन गेल तो ओही जगह पनेरिन के मूँड़ी काट देलन आउ लाल से सब हाल कह सुनौलन।
एकरा बाद राजा के दमाद सबेरे लाल के राजदरबार में भेज देलन आउ अपने फिनो जनानी भेस में हो गेलन आउ सारा हाल राजा से भी कह देलन । राजा सुन के अचरज में हो गेलन। फिन तीनो एके साथ रहे लगलन । अठवाँ रोज जब रानी लाल के सुतला पर महल में गेल तो लाल के हाथ-पाँव पसार के सूतल देखलक । आज रानी जोर से लाल के झकझोर के उठौलक तो ऊ खिड़की के राहे भाग चलल । रानी भी पीछे-पीछे खदेरे लगल आउ जाइत-जाइत कहे कि जो चहे रह बाकि जाति बतवले जो। एतना सुन के हीरा भी सोचलक कि हमहूँ न जानइत ही कि ई कउन जाति हथ? से ओहू पीछे-पीछे खदेरे लगल। लाल भागे लगल आउ दूनो पीछे-पीछे खदेरे लगलन। लाल भागइत-भागइत एगो पोखरा में कूद परलन । तइयो ओहनी एही कहइत हथ कि जो चाहे आव बाकि जतिया बतवले जो। एकरा पर लाल साहेब कहलन कि हम आईं कि जाईं । बाकि एहनी ओही सुर धयले बकइत रहलन। अंत में लाल डूबी मार लेलन आउ सरप बनके ऊपरे फन फैला देलन । फिन फाँय से करके डूबी लगा देलन । दूनो छाती पीट-पीट के रोबे लगलन आउ रोइत-रोइत राजमहल में रहे लगलन ।
कुछ दिन के बाद राजा डुग्गी पिटवा देलन कि जे हमर दमाद के पता लगा देत ओकरा हम आधा राज-पाट दे देम। कोई बीड़ा उठावे ला तइयार न होवे। अंत में एगो बूढ़ा तइयार भेल कि आखिर भूखे मरइत ही, ओइसहूँ मरब। से ऊ जाके बीड़ा उठा लेलक आउ चौराहा पर रखल नगाड़ा पीट देलक । नगाड़ा के अवाज सुन के राजा सिपाही से बूढ़ा सोनार के बोलवलन आउ कहलन कि तू पता लगा देवहीं? बूढ़ा कहलक कि हम पता लगा देव आउ ऊ घरे से चलल । जाइत-जाइत ओही जंगल के पोखरा पर गेल जहाँ लाल साहब कूद गेलन हल । उहाँ साँझ हो गेल तो डर के मारे ओहिने एगो बड़ के बड़का पेड़ के खोड़रा (कोटर) में लुका गेल।
आधा रात होयल तो देखइत हे कि तलाब में बड़ी मानी परी आउ इन्दर महराज के साथे लाल (राजा के दमाद) भी हथ । ओहिजे इनरासन लगल। खूब नाच-गाना भेल आउ भोरे भेल तो सबहे ओही तलाब में कूद गेलन । एकरा बाद सबेरे बूढ़ा सोनार उहाँ से आन के राजा के सब हाल कहलक कि हम पता लगा लेली हे। से दूनो रानी चलथ, हम देखा देबइन । दोसर दिन दूनो रानी के लेके बूढ़ा सोनार उहाँ गेल आउ खोड़रा में लुका गेल । तब तक सोनार रानी के सब हाल बता देलक हल। रात में सब परी अयलन, फिन इन्दर भगवान आउ लाल अयलन आउ नाँच-गान होवे लगल । खूब नाच भेल, भोर भेल तो सबहे परी आउ इन्दर महराज तलाब में कूद गेलन । पीछे लाल कूदे लगल तो सोनार इसारा कैलक आउ दूनो रानी जाके कमर पकड़ लेलन। सबेरे लाल कहलन कि अब हमरा पकड़े से कोई फायदा न हवऽ । तहिना हम कहलिवऽ कि हम आई कि जाईं तो तोहनी कुच्छो न कहलऽ। एकरा पर रानी बड़ी घिघिअयलन, तो लाल कहलन कि एगो उपाय हवऽ, आज रात के तोहनी तमासा देखे ला बइठ जइहँ आउ हमरा तबला बजावइत खानी खूब गाँजा चढ़ा के दीहँऽ । हमरा निसा आ गेला पर तबला ठीक से न बजत, तो इन्दर महराज खिसिया के दोसर के तबला बजावे ला कहतथुन। तूं तइयार हो जइहँऽ । ई सुन के ओहनी घरे चल अयलन।
दोसर रात रानी ढेर मानी गाँजा लेके तलाब पर पहुँचलन। रोज नियन इनरासन लगल हल । परी के नाँच-गान होबे लगल आउ रानी गाँजा भर-भर के ठेकइचा (लाल) के देवे लगलन । ठेकइचा निसा में हो गेल। जेकरा से तबला ठीक से न बजे। एकरे पर इन्दर महराज खिसिया के दोसर तबलची के बोलौलन तो रानी तइयार हो गेलन। खूब नाँच जमल । इन्दर महराज खुस हो गेलन आउ तबलची से कहलन कि इनाम माँग। रानी जब तीन बचन ले लेलन तब कहलन कि हमरा ई तबलची के दे दिहूँ । मन मसोस के इनर महाराज ठेकइचा के ले जाय ला हुकुम दे देलन । उहवाँ से लाल आउ दूनो रानी अप्पन राज में चल अयलन आउ खुसी से रहके राज करे लगलन।
Once upon a time, there was a wealthy merchant in a country. After some days, a calamity struck him, and he lost all his wealth and possessions. He started to suffer from hunger without food to eat. So, he began to cut wood in the forest and sell it just to make ends meet for himself and his wife. One day, he told his wife to take a handful of chickpeas from the jar and roast them, so they could take them into the forest. He would work hard and cut wood, and if he could eat some roasted chickpeas, he would be able to bring back two loads of wood.
The merchant took the chickpeas and went into the forest. There, after cutting two loads of wood, he went to a pond to drink water. When he returned, he saw a big serpent sitting on the load of wood. He started to panic and became confused about what to do, as he wouldn't earn a single penny today. After thinking for a while, he took a large bamboo stick from home and prepared to strike the serpent. Just as he was about to approach, the serpent slithered away quickly.
When he looked around and saw that there was no serpent, he tied the load and thought it was a stone. Wisdom does leave a person when wealth is lost, so he decided to take the stone to the market and sell it along with the wood.
Each day, wood buyers would come, and one such buyer bought the wood at double the price. Then, he said he had a stone and asked for two or four more puffs of tobacco in exchange. The merchant, upon seeing the stone, said, "This is not just a stone; it is a ruby. I will give you fifteen thousand for it." The merchant agreed, and there was a huge crowd at the marketplace, so he left after a while and went to another shop. The next buyer saw the ruby and said he would give twenty-five thousand for it. The merchant agreed again and took the twenty-five thousand rupees back home.
After this, the first buyer of the ruby started to argue with the second buyer. The matter reached the king, who called all three of them. First, he asked the merchant if he had sold the ruby. The merchant said that he possessed a stone. He had asked the first buyer for a few puffs of tobacco in exchange for the stone, and that buyer stated he would give him fifteen thousand. Seeing the crowd, he went to the second buyer who offered twenty-five thousand. The king, upon hearing all this, said there was no one at fault. The ruby wouldn't stay with either of the buyers. It would eventually end up in the king's treasury. He ordered that the twenty-five thousand rupees be returned to the buyer, and the ruby was given to the queen. The king warned that the ruby should be kept well and that they mustn’t forget about it. Should they forget, it would be their end.
The queen locked the ruby in a chest. After some days, the king ordered his guards to bring him the ruby from the queen. The guards asked the queen for the ruby, but when the queen opened the chest, she found that the ruby was not there, and in its place, there was a little boy playing and hitting his feet on the ground. The queen immediately closed the chest and told the guards to inform the king that the key to her chest was lost. So, she had called them for that reason. The guards went back to tell the king, and he returned home to open the chest. He was amazed to find this.
The king then ordered to call his daughter, who was to recognize the boy. They made many men stand in the same place as the boy's outfit and appearance. The daughter, while moving around, recognized and held the boy's hand. Then the king confirmed that he was indeed her fiancé. The merchant and the queen saw the boy, and they conveyed everything to the king.
After some days, the girl went to where the ruby was locked and saw the boy sprawled out on the bed. Today, the queen shook the boy awake forcefully. He, upon awakening, fled through the window. The queen chased after him, shouting, “What caste are you?” Hearing this, the girl thought, “I also don't know what caste he belongs to,” and began to chase after him as well. The boy ran and finally jumped into a pond. Still, they kept on shouting, “Whatever you wish can come, but tell us your caste.” The boy replied, “I can come and go.” Yet they continued to shout that tune. In the end, the boy drowned and transformed into a serpent, spreading its hood out.
Days passed, and the king declared, "Whoever finds my son-in-law shall receive half my kingdom." No one had the courage to take on the task until finally, an old man stepped up. He thought, "It’s better to die than to starve." He decided to take on the challenge and struck a drum at the crossroads. Hearing the sound, the king called the old goldsmith and asked him to find out. The old man agreed and left his home. Along the way, he reached the pond where the boy had jumped in. As night fell, he was so scared that he hid in a hollow of a large tree.
In the middle of the night, he saw the fairy and Lord Indra along with the boy. Everyone was dancing and celebrating. When dawn approached, they all jumped into the pond. The next morning, the old goldsmith came back to the king and told him, "I have found where the one you seek is." He took both princesses back with him to show them.
On the following day, he brought both princesses to the pond and hid in the hollow. He told the princesses everything. When night fell, all the fairies came, and then Lord Indra and the boy came, and the celebration began again. When the boy was about to jump in after everyone else, the goldsmith gestured, and both princesses caught hold of him. In the morning, the boy said, "Now being caught is of no benefit. As I mentioned, 'I can come and I can go,' but you didn't say a word about it." Hearing this, the princesses were very alarmed. The boy said, "There is a plan. Tonight, you will sit down to watch the spectacle, and while I play the tabla, you should give me a lot of marijuana." When I am intoxicated, I won't play the tabla well, and then Lord Indra will get upset and call another tabla player. You be prepared for that." Hearing this, they returned home.
On the following night, the princesses brought a lot of marijuana to the pond. As everyone was dancing and celebrating as on other nights, the princesses began to feed the boy marijuana. The boy fell into a deep slumber, which kept him from playing the tabla properly. This frustration led Lord Indra to call for another tabla player. The princess, upon choosing a time to strike back, asked for the drummer. Upon taking three oaths, she said, "Give this tabla player to me." Indra, gritting his teeth in reluctance, ordered that the boy be taken away. From there, the boy and both princesses returned to their kingdom and ruled happily.