नाग के अँगूठी

अलौकिक चमत्‍कार कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

Tags: prince, compassion, adventure, magic, family

The story follows a compassionate young prince who, after his father's death, embarks on a journey into trade. He spends his money rescuing a cat, a snake, and a tiger, each of whom decides to follow him as a token of gratitude. The boy then receives gifts from each animal: a stick that transforms a handsome person into a hideous creature, and a special piece of snake skin that provides comfort when one sleeps on it.

The prince hides his identity by pretending to be a leper during the day but reveals his true self at night, ultimately catching the attention of the queen, who marries him. They return to the village, where they are celebrated. The story concludes with a joyful reunion of the prince and his mother, symbolizing love, compassion, and the bonds of family.

एगो बड़का राजा हलन । उनका एगो लइका हल । कुछ दिन के बाद राजा मर गेलन तब रानी लइका के साथे रहे लगलन । एक दिन लइका माय से पूछलक कि हम बेपार करे जाइत ही । माय लइका के छौ सौ रूपेआ देलक। लइका रोपेआ लेके चल देलक । राह में कई आदमी मिल के एगो बिलाई के मारइत हलन । राजा के लइका के देख के मोह लगल । से ऊ कहलन कि बेचारी बिलाई के जान काहे मारइत हऽ घ् एकरा छोड दऽ । तब एकरे पर, राजा के लइका पर सबहे खिसिया गेलन कि ई हमर सब दूध-दही खा जाहे आउ बरबाद कर देहे । एकरे पर राजा के लइका कहलक कि ई तोर केतना रोपेआ के समान खराब कैलक हे। हम तोरा दे देव । सबे कहलक कि दू सौ रूपेआ के। झटपट दू सौ रूपआ देके ऊ बिलाई छोड़ा देलक ।

लइका जब आगे चलल आउ तनी दूर जा के पाछे घूर के देखलक कि बिलाई भी चलल आवइत हे। लइका बोलल कि ए माँई बिलाई, तू हमरा पीछे-पीछे काहे आवइत हैं ? तोहरा तो हम भलाई कइलिअउ ! तब बिलाई कहलक कि तू हमर जान बचवलऽ हे, तऽ हम तोरे साथ जायब । दूनो जाइत-जाइत दूसर गाँव में पहुँचल तो देखइत हे कि ढेर-सा अदमी एगो सरप के जाने मारे ला तइयार हथ । लइका जा के कहलक कि ए भाई, तोहनी सरप के काहे मारइत हँ ? एकरा छोड़ दऽ । तब सबहे एकरे पर खिसिया गेलन आउ कहलन कि हमनी के सब कबूतर पकड़ के खा जाहे । ओकर दाम तूहीं दे देवें? लइका बोलल कि केतना के बरबाद कर देलक हे ? लोग कहलन कि दू सौ रूपेआ के । लइका दू सौ रूपेआ निकाल के दे देलक । उहाँ से लइका चल देलक।

थोड़े देर के बाद पीछे घूर के देखलक तो साँप भी साथे आवइत हल । ऊ पूछलक कि तू हमरा पीछे-पीछे काहे आवइत हैं ? साँप कहलक कि अपने हमरा जान बचौली हे, एकरे से हम तोहरे साथे जायब आउ साथ ही चले लगल । थोड़े दूर गेला पर देखलक कि एगो गाँव में लोग बाघ के अधमुआँ करके जान से मारे ला तइयार हलन। एतने में लइका पहुँच गेल आउ कहलन कि हाय-हाय जान केकरो न मारे के चाहीं । एकरे पर लोग ओकरा मारे खातिर दउड़लन आउ कहलन कि हमनी के गाय-बैल के मार के खा गेल हे । तूं ही ओकर दाम दे देबे ? लइका कहलक कि केतना रोपेआ के खा गेल हे। लोग बोललन कि दू सौ रोपेआ के । एतने पर राजा के लइका दू सौ रोपेआ निकाल के दे देलन, तब लोग बाघ के छोड़ देलन । एकरा बाद लइका चल देलक। कुछ दूर गेल तो पीछे घूर के देखइत हे कि बाघ भी पीछे-पीछे चलल आवइत हेअ । से पर लइका कहलक कि ए भाई, हम तोरा तो जान बचवली हे, तो हमरा साथे काहे चलल आवइत हे ? बाघ कहलक अपने हमरा जान बचौली हे, अपने जहाँ जायब उहाँ हमहूँ जायम !

लइका तीनों के लेके घरे चल देलक । जब गाँव में पहुँचे पर हल तऽ गाँव के लोग देख के रानी के पास दउगल आके कहलक कि तोहर लइका बिलाई, सरप आउ बाघ के साथे मदारी कर हथुन । रानी सबे पर खूब खिसियलन आउ झरोखा पर चढ़के देखलन कि ठीके में हमर लइका मदारी बनल आवइत हे। तुरत दुहारी से बाहर होके खिसिया के बोललन कि जाके ई सबे जंगल-झाड़ में छोड़ के आवऽ हे कि नऽ ? लड़का तुरते उलटे गोड़ लौट गेल ।

जाइत-जाइत जब बिलाई के घरे भिरू पहुँचलन तो बिलाई कहलक कि हम अपन घरे चल अइली से हमरा से तू कुछ चिन्हा लेलऽ । राजा सोचलन कि बिलाई हमरा कउन चीज देत । से ई पर बिलाई एगो एक बिता के लकड़ी देलक आउ कहलक कि एक दने एकरा सूँघे से खूब सुन्नर बारह बरस के लड़का बन जायत आउ दूसर दने सूँघला पर पीब आउ खून यानी कोढ़िया रूप में हो जायत । राजा के लइका लकड़ी लेलन आउ जाइत-जाइत बाघ के माँद भिरू पहुँचलन तो बाघ कहलक, हमरा से एगो चीज चिन्हा में लेले । बाघ एगो बाघछला ले आन के देलक आउ कहलक कि जे बाघछला बिछा के सूत जायत ओकरा गलइचा नियन गुलगुल लगत । लइका लेके चल देलक।

जाइत-जाइत राजा के लइका सरप के बिल के पास गेल तब सरप कहलक कि हमर घरे चलूँ । तब राजा के बेटा बोलल कि हम छोटी गो बिल में कइसे घुसब ? तब साँप कहलक कि हम पहिले घुस जाइत हिवऽ तऽ तू एक ताली मारी हँ आउ घुस जइहँऽ । सरप के घुस गेला पर राजा एक ताली मारलन तो सोना के लगल फाटक खुल गेल। राजा साँप के पीछे-पीछे चले लगलन । उहाँ रंग-विरंग के साँप देखलन । साँप के बेटा अपन भाखा में सब सँपवन के समझा देलन कि कोई टस से मस मत होइहें, न तो सब के खादे-भूसा भरवा देवऽ । राजा साँप-राज के बेटा के पीछे-पीछे सँपवन के कचड़इत-उचड़इत चलल जाइत हथ । सरप बेचारन कुछो न बोलथ । नाग के बेटा अपन बाप के पँवलगी कैलेन, तो राजा के बेटा भी कैलन । नाग के बेटा अप्पन पिछला हाल सब सुनौलन । राजा के बेटा कुछ दिन उहाँ रहके पहुनई खैलन, आउ फिनो अप्पन घरे चले के इरादा प्रगट कैलन, तब सर्पराज के बेटा कहलक कि हमर बाबू जी तोरा जाइत खनी बड़ी मानी अन-धन देथुन, बाकि तू कुछो मत लिहँ फिनो अंत में तीन लखार लेला के बाद कहिँहँऽ कि अपने अप्पन हाथ के सोना के अँगूठी दे दिहीं। तब उनका अँगूठी देवे पर जतइन ।

जब राजा नाग-राज के पास जाके कहलक कि हम घरे जइती हल, तब ऊ कहलन कि तोरा अन्न-धन, सोना-चाँदी जेतना मन हवऽ ओतना लेलऽ । राजा कहलन कि हम ई सब कुछो न लेब। बाकि नागराज से तीन बार हंकार कहवा के सोना के अँगूठी ले लेलन जे मँगला पर मुँह-माँगल पदारथ दे हल ।

राजा उहाँ से चलते-चलते एगो भारी जंगल में पहुँचलन । उहाँ ऊ सब चीज के परचोवा लेवे लगलन । जाँच में लकड़ी, बघछला आउ अँगूठी अपन-अपन सही करमात देखौलक । फिन राजा के बेटा ओही जंगल में रहे लगलन । दिन भर कोढ़िया के रूप में रहऽ हलन। रात में सुन्नर लड़का बन के सवा बित्ता जमीन लीप के कहलन कि हे नाग देवता के अँगूठी, बजार आउ रंग-बिरंग के समान सजा दऽ नऽ ? उहाँ बजार लग गेल । राजा के बेटा के कहला पर रंग-बिरंग के इंदर के परी आके नाचे लगल । जब अराम करे के बेरा होय तो अँगूठी के कह देथ कि फिनो ज्यों-के-त्यों हो जा नऽ ? तब फिन ओही तरह से हो जा हल। राजा अइसहीं अनंद मनावइत कुछ दिना ओही जंगल में रह गेलन ।

एगो दूसर राज में राजा के तीन गो लइकी हल। राजा तीनों से पारा-पारी पूछलन कि बताव तो तू लोग केकर किस्मत से खाइत पीअइत हऽ । बड़की बेटी बोलल कि हम अप्पन किस्मत से खाइत-पीअइत ही, बाकि आउ सबहे कहलन कि हमनी बाप के किस्मत से खाइत-पीअइत ही । राजा बड़की बेटी पर खिसिया गेलन। सिपाही के हुकुम देलन कि अइसन लइका खोज लाव जेकर न घर दुआर होय न5 हाथ-पाँव होय यानि कोढ़िया होय । सिपाही चलल । खोजइत-खोजइत ओही लइका भिरू पहुँचल ज़े जंगल में दिन खनी कोढ़ी के भेस बना के रह रहल हल आउ रात के सुन्नर लइका बन जा हल ।

सिपाही देखके खूब खुस होयलन आउ जाके कोढ़िया से कहलन, चल तोरा राजा के लइकी से सादी करा दिअऊ। कोढ़िया रोबे-कलपे लगल । सिपाही सब बरिआरी धर-पकड़ के राजा के पास ले गेलन । राजा देखके कहलन कि बहुत ठीक है। लड़की के महल से बोला के ओही लइका से बिआह करा देलन । सिपाही के जरिया कोढ़िया लइका के साथ अपन लइकी फिन ओही झोपड़ी में पहुँचा देलन जहाँ पर कोढ़िया पहिले रहऽ हल ।

जब लड़की के खयला बिना दू-तीन दिन हो गेल आउ भूखे रहल न गेल तो जाके कोढ़िया से कहलक-- हमरा कुछो खाय खातिर दऽ, हमर प्राण निकलल जाइत हे । कोढ़िया कहलक कि पहिले तो गाँव-गिराव जाके माँग-खा हली, बाकि तोहरा आवे से कहऊँ जायते न हिअ । जब रानी मन मसोस के सूत गेल, तब ओही डोली में लइका पहिले ही जइसन सहर- बाजार बसा के अनंद लूटलक आउ रानी खातिर सतमेर मिठाई एगो सोना के परात में रखके झोपड़ी में खोंस देलक। सबेरे रानी उठल तऽ कहलक कि दऽ न कुछ खाय ला । तब कोढ़िया कहलक कि देख न ओनही कुछ खाय-पीये लागी होयत। पहिले माँग के रख हली तो ओनही रख दे हली। रानी जाके देखलक तो दाँते अँगुरी काटे लगल अउ मन में सोचलक कि जरूर से जरूर कोई बात है। परात में से मिठाई खैलक-पीलक आउ ओकरा बाद अराम कर नीन आ गेल । साँझ हो गेल। कोढ़िया अप्पन रूप बदलके पहले ही जइसन सहर-बाजार बसौलक और परियन के नाँच-गान गवा के कुछ मिठाई खैलक आउ परात में ले आन के पहिले ही नियन रख देलक । रानी के कुछ संदेह हो गेल ।

एक दिन रानी झूठ-मूठ नीन के बहाने डोली में से देखे लगल । रात मे कोढ़िया अप्पन रूप बदललक । कुछ दूर गेल। ई सबे देख के रानी बड़ी खुस भेल आउ ओकरा पीछे-पीछे चले लगल । कुछ दूर जा के देखइत हे कि राजा खूब बढ़िया सहर-बजार बसौले हथ आउ परी के नाच नचावइत हथ । जाके उनकर जाँघ पर बइठ गेल। राजा देखके अचरज में पड़ गेलन । तुरंत सहर बजार-गायब हो गेल। रानी कहलक कि अइसन एतना दिन से काहे कैले हऽ । ओही दिन से राजा असली रूप में रहे लगलन।

कुछ दिन के बाद रानी के बाप के हिऔं से बहिन के बिआह के नेवता लेके नउवा आयल । नउवा के नस्ता-पानी करे ला सोना के छिपनी में सतमेर मिठाई देलक। नउवा पानी-उनी पी के छिपनी माँज के रख देलक आउ चले ला तैयार होयल तो रानी कहलन कि हमरा ही जउन अदमी आवऽ हे, आउ जउन समान में खा हे से सबहे लेले जाहे । तूहूँ ई छिपनी लेले जो। नउवा भीतरे भीतरे खूब खुस होयल । छिपनी के साथ सभे समान बाँधले घरे पहुँचल । राजा ही गेल, तऽ राजा पूछलन कि हाल-चाल कह रे ठकुराई । ठकुराई कहलक कि राजा जान बकस दिहीं तऽ कह सुनाईं। राजा जान बकस देलन, तब नउवा कहलक, जइसन चीज अपने के बेटी खा हथ ओइसन अपने के खनदान देखलक भी न हे। राजा बड़ी खिसिया गेलन । तब नउवा घरे से लान के सोना के छिपनी आउ लोटा-गिलास देखा देलक, तो राज दाँते अँगुरी काटे लगलन। मने मन राजा कहलन कि ठीके न बेटी कहलक हल कि हम अप्पन किस्मत से खा ही।

इहाँ बहिन के बिआह के नेवता में आवे खातिर रानी अप्पन पति से कहलक कि नेवता पर जाहुँ न। राजा कहलन कि हम नऽ जायव । सेकरा पर रानी बोलल कि हम जरूर जायव । तब नेवता पर जाय लागि बढ़िया-बढ़िया साड़ी कपड़ा, सतमेर मिठाई लान के रानी के देलन । रानी डोली पर चढ़के चललन तऽ राजा चेता देलन कि चउठारी के दिन चल अइहँऽ न तो फिन हमरा एहिजा न पयबऽ । रानी नइहर के दुहारी पर पहुँचलन तो देखे ला भीड़ लग गेल । नेवता के समान अँगना में खोलल गेल तो देख के लोग के अचरज के ठेकाना न रहल। सादी-बिआह के बाद रानी नइहर से अप्पन पति के घरे जंगल में आ गेलन ।

दूनो परानी मजे में उहाँ रहइत हलन तो एक दिन राजा के अपन माय के इयाद आयल तो ऊ जार-बेजार रोवे लगलन। रानी केतनो मनावे तो राजा चुपे न होथ। रानी लोर पोंछ के राजा से पूछलन, त राजा सब हाल कह सुनौलन। रानी कहलन कि एतना दिन से हमरा कुछो न कहल हल। तुरंत डोली पर रानी आउ घोड़ा पर राजा सवार हो के अप्पन घरे चललन । जब ओहनी अपन गाँव के दुसीआनी पर पहुँचलन तो गाँव के लोग आन के रानी (माय) से कहलन कि तोर बेटा बिआह करके आवइत हथुन । रानी के रोइत-रोइत आँख आन्हर हो गेल हल । सुनके रानी बड़ी खिसिया गेलन । एतने में घोड़ा ठोकले राजा घर पहुँच गेलन आउ पांव लागी माय कहलन। ई सुनके रानी एतना खुस होलन कि एक-ब-एक उनकर आँख के रोसनी आ गेल । अप्पन लइका के छाती में लगावे ला भर अँकवार पकड़ लेलन। बिछुड़ल बेटा से अइसने मेल सब मतारी के होवे । आउ फिन सब मिल-जुल के रहे लगलन ।

See translation

Once there was a great king who had a son. After some days, the king passed away, leaving the queen to take care of the child. One day, the child asked his mother if he could go into trade. The mother gave him six hundred rupees, and he set off. On the way, he saw several men beating a cat. Seeing this, the king's son felt pity and said, "Why are you killing the poor cat? Let it go." The men retorted, "This cat has eaten all our milk and curd, ruining it for us." The boy asked how much they wanted, and they said two hundred rupees. Quickly, he gave them two hundred rupees and freed the cat.

As the boy continued, he looked back to see the cat following him. He asked, "Oh cat, why are you following me? I saved your life!" The cat replied, "You saved me, so I will follow you." As they walked, they reached another village where people were preparing to kill a snake. The boy approached and asked why they were going to kill the snake. They replied, "It has eaten our cows and bulls. Are you going to pay for it?" The boy asked how much it had eaten. They replied, "Two hundred rupees." He took out two hundred rupees and paid them, freeing the snake.

After some time, the boy saw that the snake was following him as well. He asked the snake why it was following him. The snake said, "You saved my life, so I will come with you." They continued walking until they arrived at a village where people were ready to kill a tiger. The boy rushed in and pleaded, "Please don't kill it!" The villagers shouted back that the tiger had eaten their cows and was costing them dearly. The boy asked how much the tiger had eaten, and they said, "Two hundred rupees." He paid them as well, and the tiger was set free.

The boy returned home with the cat, snake, and tiger. When they reached the village, the villagers ran to the queen to inform her that her son was entertaining a cat, a snake, and a tiger. The queen was annoyed and shouted from her window, "Are you letting these creatures into my house?" Hearing this, the boy turned back.

When the cat got close to its home, it told the boy to take something as a token. The boy thought about what the cat could give him. The cat gave him a stick that would turn a handsome young boy into a hideous creature if smelled. The boy accepted the stick and went on until he reached the snake's den. The snake too offered him a token, a special piece of skin, saying whoever slept on it would feel comfort as if on a soft bed. The boy took that as well.

Next, the boy approached the snake's home, and there the snake offered to take him to its abode. The boy entered the den, and at that moment the snake's son explained the situation. They all went to the snake’s palace and lived together for some time. During the day, he hid in the form of a leper, while at night he turned into a handsome young man, entertaining visitors and callers.

One day, when the servant came to fetch the boy for the queen's marriage invitation, he was excited but pretending to be a leper. The queen fell for his charm, married him, and brought him back to the forest.

After a few days, the queen found herself missing her husband, so they both decided to return to the palace. Upon reaching the village, the queen saw the crowd celebrating a wedding. When they opened the items brought for the hen party, everyone was surprised at the lavish display.

Days passed by, and the queen's father sent an invitation for her sister's marriage. At the feast, the queen asked the servants to fetch everything. Meanwhile, her husband expressed his displeasure and refused to go initially, but seeing her determination, he agreed to accompany her. After reaching her father's house, the villagers spoke highly of her husband.

The scene then shifts to the king remembering his mother and grieving deeply. The queen called to him, revealing all his feelings. The king then decided to return, and as they did, the villagers cheered that he had come home after marrying a beautiful queen.

Thus, they all rejoiced, embracing and celebrating their reunion.