Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह
Tags: saga, hardship, compassion, jungle, problem-solving
The story is about a sage and his daughter facing hardships and unfulfilled desires. The sage, unable to meet their needs, decides to abandon the daughter in the jungle. However, when she pleads to stay, she offers a solution, leading them to return home. The narrative highlights themes of struggle, compassion, and problem-solving.
एगो बाबा जी हलन-दूगो परानी। दूनो के पेट कहिनो न भरे। बाबा जी केतनो माँगथ बाकि सुख से न रहथ। एही बीच उनका एगो लड़की भी जलम लेलक। कुछ दिन में लड़की बड़की गो हो गेल, तो खेवा-खराच के आउ मोसकिल हो गेल। से एक दिन बाबा जी पड़िआइन से कहलन कि एकरा जंगल में जाइत हीवऽ छोड़ आवे, काहे से कि हमनी दूनों के तो पेटे न भरे हे, एकरा बीच में कहाँ से जुटाईं? पड़िआइन कहलन कि ''जाके छोड़ आवऽ!'' बाबा जी बेटी के लेके जंगल में छोड़े चललन। जंगल में छोड़ के आवे लगलन तो बेटिया बोलल कि बाबु जी हमरा इहाँ काहेला छोड़इत हऽ। बाबा जी कहलन कि हमनी दूनो परानी के तो खरचे न चले, तोरा काहाँ से जुटाईं। तब बेटिया बोलल कि हमरा लेले चलऽ। हम उपाय बतबवऽ। त दूनो बाप-बेटी लौट के घरे आ गेलन । पड़िआइन पूछलन कि एकरा फिनो लेले काहे अयलऽ?
ऊ जबाब देलन कि ''ई कहलक कि हम खाय-पीये के उपाय बतबवऽ!'' घरे अयला पर पंडी जी पूछलन कि ''ए बेटी, अब खाय-पीये के उपाय बतावऽ !'' लड़किया कहलक कि ''एगो राजा हथ, जे सबेरे उठ के नेहा-धोआ के एक डलिया सोना दान करऽ हथ। उनका भीर एगो ब्राह्मन रोज जा के दान ले आवऽ हे। से तूं कल्ह से खूब सबेरे उहँई जा के कहिँहँक कि ''जय जजमान, भोरे के दान, सदा कलेयान!'' दूसर दिन सबेरे ही बाबा जी पहुँचलन आउ दूरा पर जा के कहलन कि ''जय जजमान, भोरे के दान, सदा कलेयान!'' राजा जी नेहा-धोआ के तइयार हलन से सुनते एक डलिया सोना बाबाजी के दान कर देलन।
राजा साहब बिना दान कयले भोजन न करऽ हलन। से बाबा जी रोज सबेरे जाय ला उहाँ परीक गेलन। पहिलका बाबा जी कुबेर के जाय, आउ लौट जाथ, से एक दिन नयका बाबा जी के हटावे ला पुरनका बाबा जी सोचलन। से ऊ राजा से कहलन कि ''अपने नयका बाबा जी से पूछब कि ''जय जजमान, भोरे के दान, सदा कलेयान'' के माने का हो हेऽ ?'’ राजा जी कल्ह ओकरा से पूछे ला तइयार हो गेलन।
दोसर दिन बाबा जी राजा के दरबार में सबेरे गेलन आउ ''जय जजमान'' कहलन तो राजा जी एक डलिया सोना दान कर देलन आउ पूछलन कि एकरा का मतलब हे? बाबा जी कहलन कि एकर जबाब हम कल्ह देम। घरे आन के बाबा जी अप्पन बेटी से राजा के सवाल कहलन। बेटी कहलन कि कल्ह जाय के बेरा हमरा से जबाब पूछ लिहँऽ। बाबा जी दोसर दिन बेटी से पूछलन तो लड़किया कहलक कि ''तूं राजा जी से जा के कह दिहँऽ, कि आज अपने नेहा धोबा के उत्तर दिसा में सिकार खेले निकल जइहँऽ, आउ जहाँ तक हो सके तहाँ तक चल जइहँऽ!'' बाबा जी राजा के दरबार में गेलन आउ बेटी से सुनल जबाब कहके दान लेके घरे चल अयलन।
राजा खा-पी के घोड़ा पर चढ़ के उत्तर दिसा में सिकार करे निकललन। जाइत-जाइत बड़ी दूर चल गेलन तो जंगल में एगो बड़ी सुन्दर बगीचा देखलन। उहाँ बैकुंठ के जम लोग कुटिया बना के बइठल हलन। उहाँ जा के ऊ खड़ा हो गेलन। एतने में जब जमराज के पास पहुँचलन, तो कउनो जम राजा के घोड़ा बान्हलक, कउनो राजा के पंखा हउँके लगल, कउनो पैर दबावे लगल। सब जम राजा के सेवा में लग गेलन। जब भोजन के बेरा भेल तब बैकुंठ से घंटी बजल। जम लोग बैकुंठ में विमान पर बइठ के राजा के साथे ले ले गेलन। जा के सब भोजन कयलन, आउ राजा जी के बैकुंठ घुमा के देखौलन। राजा जी देखलन कि ''एगो बड़ी बढ़िया तलाब बनल हे। ओहि जगुन सोना के बढ़िया सिंघासन बनल हे। ओकरा चारो बगल बढ़ियाँ फूल सोहाइत हे।'' राजा साहब जम से पूछलन कि ई सब काहे ला बनल हे? जम बोलल कि ''एगो मृत्युभुवन में अइसन राजा हे, कि ऊ रोज एक डलिया सोना दान कर के ही खा हे। ओकरे ला ई सिंघासन बनल हे। मरला के बाद ऊ इहँईं आवत, आउ एकरे पर बइठ के बैकुंठ के सासन करत!'' राजा घोड़ा पर चढ़ के अप्पन घरे लौट गेलन।
दोसर दिन राजा सबेरे उठलन, तो पहिलका पंडी जी के देखलन। पंडीजी राजा जी से पूछलन कि बाबा जी ''जय जजमान'' के का अर्थ बतौलन। राजा साहब अप्पन सब करमात कह सुनौलन। तब बाबा जी राजाजी से कहलन कि ''ई करमात उनकर न हे। उनका एगो बेटी हे। ओही सब करमात बाबा जी के बतावऽ हे। अपने ओकरा से सादी कर लिहीं!'' ई कह के पंडी जी उहाँ से चल देलन। थोड़े देर के बाद बाबा जी जब दान ला अयलन, तो उनका दू डलिया सोना दान देलन, आउ कहलन कि ''अपने अप्पन बेटी के साथ हमरा सादी कर दिहीं!'' बाबा जी कहलन कि हम एकर जबाब कल्ह देम। बाबा जी ई कह के घरे अयलन आउ अप्पन लड़की से ई हाल कह सुनौलन। बेटी कहलक कि राजा से जा के आज कह दिहँऽ कि ''फिनो राजा ओही स्थान पर जाथ, तो दोसर दिन हम सादी कर देबइन!''
दोसर दिन राजा बाबाजी के दू डलिया सोना दान करके जंगल के कुटिया में पहुँचलन, तो साधु लोग कुल्हाड़ी ले के मारे दौड़लन। तइयो राजा बरियारी उहाँ जा के पड़ गेलन। जब खाय-पीय के घंटी बजल, तो विमान पर सब चढ़ के जाय लगलन, तो जम राजा के धँसोर देलन, बाकि ओकर पाँव पकड़ के ओहू बैकुंठ में चल गेलन। उहाँ सब खा-पी लेलन, बाकि राजा के कोई न पूछलक। तइयो राजा साधु के साथ घूमे लगलन, तो पहिलका पोखरा में पीव के धारा चलइत देखलन, ओमे पिल्लू बिदबिदाइत हले, सिंहासन ढहल हले, फूल-पत्ती सूखल हले। राजा एकरा कारन पूछलन, तो साधु बतौलन कि ''ई मृत्युभुवन के दानी राजा ला बनल हल, बाकि उनकर नीयत अब खराब हो गेल हे। बाबा जी के बेटी से ऊ बिआह करे ला चाहइत हथ। एही से उनकरे ला ई नरक बन गेल हे। एकरे में हमनी उनका डुबायम!'' राजा एकरा से बचे के उपाय पूछलन। साधु लोग कहलन कि ''राजाजी बाबा जी के बेटी के अप्पन बेटी समझ के बिआह देतन, आउ कनेया-दान करतन तो उनकर पाप कट जायत!'' राजा घरे आन के बाबा जी के बेटी के खूब खर्च-बर्च के साथ बिआह देलन। अपने कनेया-दान कयलन। पहिलका बाबा जी अयलन तो उनका कहलन कि अबरी से हमरा हीं अयबऽ तो गड़हरा भरा देबवऽ। एकरा बाद बाबा जी अराम से रहे लगलन।
Once, a sage went on a hunt. Neither their stomachs were satisfied nor their needs fulfilled. Despite asking for many things from the sage, he was never content. During this time, a girl also appeared there. After some days, the girl grew up and her beauty increased further, and she faced more problems and pains. One day, the sage told his disciple to go and leave her in the jungle because neither they could satisfy their needs nor could they take care of her. The disciple replied, "Go and leave her!" The sage then took his daughter and left her in the jungle. When he started to leave, the daughter asked, "Baba, why are you leaving me here?" The sage said, "Neither of us can sustain ourselves, so where will I find means to support you?" The daughter then said, "Take me along. I have a solution." So, both father and daughter returned home. The disciple asked, "Why did you come back again?"