दिलवर जान

प्रेम-कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

Tags: fairy tale, magic, adventure, love, determination

The story revolves around a king's son who dreams of a magical market filled with sweets and a beautiful sweet seller. After a long quest to find her, guided by various adventures, he discovers the sweet seller in the market of his dreams. Despite facing numerous challenges, including a daunting task set by the prince's father and the sweet seller's demand for a substantial bride price, the prince perseveres with the help of magical companions. Ultimately, their love prevails, and they marry, bringing joy to both families and the kingdom. The narrative explores themes of determination, love, and the intertwining of magic and reality.

एगो राजा के बड़ी तपस्या के बाद एगो बेटा भेल । ऊ बड़ी तेज हल आउ पढ़के जब सोरह बरस के भेल तो एक दफे ऊ सपना देखलक- ''बावन गली तिरपन बजार, सीसा के बजार हे । ऊ बजार में एगो बड़ी सुन्नर हलुआइन हे । ऊ तीन दाम के मिठाई बेचऽ हे- पच्चीस रुपेया सेर, पचास रुपेया सेर आउ सौ रुपेया सेर । सेर भर मिठाई खाईं तो बड़ी अच्छा होय।'’

अन्हारे ऊ लइका ऊ बजार देखे ला तइयार भेल, तो बाबूजी पहिले अपने देख आवे ला कहलन । ऊ जाके सौ कोस के दूरी पर ओइसने बजार लगा देलन, आउ ओकरा में एगो हलुआइन बइठा के समझा देलन । फिन लइका ऊ बजार के देखे जाय ला तइयार भेल। बेटा घोड़ा पर खूब रुपेया लाद के चलल, साथ में बापजान भी हो गेलन । बनावटी बजार में लइका पहुँचल, तो हलुआइन से मिठाई के दाम पूछलक, आउ लेके खयलक बाकि ओकरा बिसवास न भेल कि ई ओही बजार हे, जे ऊ सपना में देखलक हल । से ऊ उहाँ से घोड़ा पर रुपेया लदले भाग गेल । बापजान उहईं मुरुछा खाके गिर गेलन।

ऊ लइका घोड़ा पर चढ़ल सात दिन सात रात चलते रहल। एक दिन एगो बुढ़िया के बावन गली से बजार कयले आवइत देखलक, आउ पूछे पर ऊ बता देलकई। लइका उहाँ पहुँच गेल, आउ सेवाना पर दिलवर जान के फोटो देख के मुरुछित हो गेल । होस होला पर बजार में घुसल बाकि ओकर थाहे-पता न लगे। से ऊ ओही बजार में एगो घर किराया पर लेके रहे लगल, आउ बावन गली तिरपन बजार में दिलवर जान के दोकान खोजे लगल ।

एक दिन ओकरा एगो सोना के घर मिलल आउ ओकरा में सब चीज सोने के देखलक तो ऊ समझ गेल कि एही दिलवर जान के घर हे । से जा के ऊ मिठाई के दाम पूछलक, सेर भर मिठाई तौला के सौ रुपया देलक आउ मिठाई छोड़ के चल देलक । अइसहीं ऊ सात दिन तक कयलक, तो दिलवर जान बापजान के पास लिख भेजलक कि हमरा दुसमन लग गेल हे, से जल्दी आन के देखऽ ।

समाचार जान के बापजान आ गेलन आउ अलमारी में लुका के बइठ रहलन। फिनो राजा के बेटा आन के मिठाई खरीदल, आउ रुपेया दे के जाय लगलक तो हलुआई निकल के उनका पकड़ लेलन आउ कहलन कि आठ सेर मिठाई ले ले इया आठ सौ रुपया ले ले ! एकरा पर राजकुमार कहलन कि हम रुपेया न लेम न मिठाइये लेम, बाकि दिलवर जान से हम सादी करम । तब हलुआई राजकुमार के सात डेवढ़ी के भीतरे ले गेलन आउ कहलन कि ई इनरा के रुपेया से भर देवें, तो दिलवर जान से तोर सादी हो जतऊ।

लड़का डेरा से सब रुपेया लान के इनार में डाल देलक आउ नोकरी करे लगल । ऊ सब रुपेया इनरा में डालले जाय, बाकि इनरा में कुछो न बुझाय । से ऊ एक दिन ओही कुआँ में गिर के मर जाय ला सोचलक। ओही रात के महादे(व) जी आउ पारवती जी ओन्नहीं से घूमे निकललन । ओकरा मरइत देख के ऊ कारन पूछलन तो ऊ कहलक कि हम दिलवर जान के संग सादी ला मरइत ही । महादे(व) जी ओकरा भभूत दे के अन्तर्धान हो गेलन । ऊ भभूत के इनरा में डाललक तो तुरते इनरा रुपेया से भर गेल । ई सुन के दिलवर जान ओकरा खाना खिलावे आयल, आउ बापजान भीर खबर दे देलक । बापजान आन के सादी के दिन धर देलन, आउ कहलन कि एक लाख मन के भात खाय परतउ, तबहिएँ सादी होतउ न तो न होतउ!

राजकुमार ई सुन के अप्पन डेरा पर चल अयलक । चीन्हल-जानल अदमी के ले के ऊ बराती अयलक। रात में ई सोंच में ऊ पड़ल हल कि लाख मन के भात के खायत? कुछ रहगीर के आवइत देखलक आउ पूछलक, तो ओमे एगो कहलक कि हम 'कमडेग' ही, जेकर माने हे कि औखत पड़ला पर हम लाख कोस के एके डेग में पार कर जा हीं ! फिनो ऊ 'कमनजर' के देखलक, जे एक नजर में लाख कोस देख ले हल। ओहनी के राजकुमार बइठा लेलक तो एगो 'कमतीर' के देखलक, जे एक तीर में लाख कोस तक वार कर हल, आउ अंत में एगो आउ 'रहगीर' के देखलक, जे औखत पड़ला पर लाख मन के भात खा जा हल । ऊ अप्पन नाम 'कमखोराकी' बतौलक। राजकुमार कमडेग, कमनजर, कमतीर आउ कमखोराकी चारो के बरियाती में बइठा लेलक। तब दरवाजा लगल आउ फिनो बीज्जे भेल । सब खा लेलन तो हलुआई सोचलन कि अब तो एकरा मारवे करम बाकि कमखोराकी अभी खाय ला बचल हले। से ऊ खाय गेल, तो एके कबर में सब भात खा गेल। लाख मन के दाल हल से ऊ एके सुरुक में पी गेल। सब घी, तरकारी जे बनल हल ऊ सब खा गेल, आउ हलुआई से कहलक कि हमरा आउ खायला देऽ न तो हम तोरा खा जबऊ। हलुआई पूछलन कि तोर का खोराक हउ? तब ऊ कहलक कि तीन पख चाउर आउ दाल-घीव । एतने मिलल, तो ऊ खा के सल्तनत हो गेल।

अब राजकुमार के सादी होवे लगल तब हलुआई कहलन कि हम ई मउर पर तोर सादी न करबवऽ, से सोबरन-साठी के मउर लावऽ। राजकुमार कमडेग के सातसमुन्दर गंडक पार जाय ला कहलक । कमडेग एक डेग में उहाँ गेल तो एगो मालिन बुढ़िया के रूप धर के मउर सीये लगल। मउर मँगला पर कहलक कि एगो कान बाकी है, सी के देइत हीवऽ। इहाँ सादी में देरी होवे लगल तो ऊ कमनजर के देखे कहलक। कमनजर देखलक तो पता चलल कि कमडेग खाट पर बइठल हे । कमतीर एक तीर मारलक तो ओकर खटिया के टाँग टूट गेल। कमडेग समझ गेल कि जल्दी मउर के मँगाइत हे। सेठ फिनो माँग़लक तो बुढ़िया कहकई कि बाबू एगो आउ कनवाँ सीये ला बाकी हे। एतने में फिन एक तीर आयल आउ अबरी खटिया के तीनो टाँग उड़ा देलक। कमडेग बुढ़िया के घर में घुस गेलन, तो देखलन उहाँ बड़ी मानी सोबरन-साठी के मउर हे, आउ बनल पड़ल हे, से ऊ ओकरा पीटलन, आउ एगो मउर ले के इहाँ एके डेग में आ गेलन । सादी हो गेल आउ राजकुमार दिलवर जान के साथ उहईं रहे लगलक।

कुछ दिन के बाद राजकुमार कहलक कि अब अप्पन घरे चले के चाहीं । एकरा पर ससुर बिगड़ गेलथिन कि हमर धन इहाँ के भोगत? तइयो ओहनी न मानलन, आउ दिलवर जान के साथ घोड़ा पर चढ़के मरदानी ठाट में दूनो घरे से निकल गेलन । जाइत-जाइत रस्ता में भूख-पियास लगल तो उनका पास एके गो रुपेया हल। ओही लेके राजकुमार बजार में समान खरीदे गेलक आउ दिलवर जान के पोखरा पर बहरिए ठहरा देलक । बजार में जाके सब समान ले के चार गो कहार ठीक कयलक आउ काना बजाज भीर से सर-सरजाम ले के रानी भीर चललक। इहाँ आन के दूनो खाय पिये लगलन। तब तक दिलवर जान एगो चोली बना देलक आउ कहलक कि एकरा बेच आवऽ। ऊ बेचे गेल आउ काना बजाजे एक लाख में ओकरा लेवे ला तइयार हो गेल। ऊ रुपेया घरे से लावे के बहाने पोखरा पर आयल आउ दिलवर जान के कहार पर बइठा के अपन घरे ले-ले चल आयल। दिलवर जान कहलक कि हम तोरा से सादी तबहिए करब जब बारह बरस तक सदावरत बाँट लेम। सदावरत बाँटे के तइयारी हो गेल आऊ ऊ बाँटे लगलक।

एने राजकुमार पोखरा पर पहुँचलक तो दिलवर जान के न पा के रोवे लगलक आउ बके लगलक कि 'हाय दिलवर जान मुझे चोली बेचने को कह गई!' ऊ बकते-बकते उहाँ पहुँचलक, जहाँ दिलवर जान सदावरत बाँटइत हलक । ऊ कहलक कि तू जा के दूगो घोड़ा ले आवऽ ! हमनी चढ़ के भाग चलम । ई बात एगो साधु के चेला सुनइत हल। से ऊ घोड़ा ले जा के लगा देलक । दिलवर जान ओकरा पर चढ़ के चल देलक। चेलवा पीछे से चलल। रानी घूम के देखलक तो जान गेलक कि ई हम्मर मरद न हथ। से ऊ कहलक कि हम्मर सोना के जूता गिर गेल हे । खोजके ले आवऽ । जब तक चेला जूता खोजे ला गेल तब तक दिलवर जान घोड़ा के कसके एँड़ मारलक आउ भाग गेलक।

एने राजकुमार अयलक तो दिलवर जान के न देख के बेआकुल होलक, आउ बके लगलक कि 'हाय ! दिलवर जान मुझे घोड़ा आनन को कह गई, मुझे चोली बेचन को कह गई !' तब तक चेलवा भी 'हाय दिलवर जान मुझे जूती खोजन को कह गई !' बकइत आ गेल । दूनो अपन-अपन मुख से एही बकइत चलल जाइत हथ। दिलवर जान ओहनी के छोड़के आगे बढ़ल जाइत हल कि रस्ता में चार गो चोर मिललक। ओहनी एकरा देख के सादी करे ला अपने में लड़े लगलन। दिलवर जान कहलक कि तोहनी अपने में काहे लाए लड़इत हऽ ? से दिलवर जान चारो के नाम में, चार गो तीर छोड़लक आउ कहलक कि जे पहिले तीर ले आवत ओकरे से हम सादी करम। चारों चार दिसा में तीर लावे धउगलन। तब तक दिलवर जान घोड़ा पर भाग गेल ।

एन्ने तीर ले के ओहनी अयलन तो चारो बके लगलन कि 'हाय दिलवर जान मुझे तीर आनन को कह गई !' एहनी बकते हलन कि राजकुमार आउ साधू के चेला भी 'चोली बेचन को कह गई' आउ 'जूती खोजन को कह गई' बकते आ गेलन । एहनी छवो अपना मुखे बउराहा के तरह बकइत एन्ने-ओन्ने घूमल चलथ । तब तक दिलवर जान बड़ी दूर के सहर में चल गेलक। सहर में मरदानी भेस में ऊ घूमे लगलक । ऊ सौ रुपेया सेर ओला तमाकू लेके पीलक आउ धुआँ फेंकलक तो समूचे सहर गमगमा गेल। दिलवर जान सोलह सौ परी के मेंठ हलक से ओकर सूरत जे देखथ से मोहा जाथ । ऊ सहर के राजा के बेटी ओकरा देखलक, तो मोहित होके जिद्द रोप देलक कि हम ओकरे से सादी करम । राजा-रानी अंत में तइयार हो गेलन आउ चटपट सादी के तइयारी हो गेल। दिलवर जान तलवार से सेनूर देलक, आउ रात में खटिया के बीचे तलवार रख के सूते लगलक । राजा के बेटी समझे लगल कि ई बेटी बुझाइत हे । एही से हमरा से बोले न हे।

एक दिन मरदानी भेस में दिलवर जान कचहरी में बइठल हलक कि ओहनी छवो बकइत ओनही से गुजरलन। दिलवर जान सिपाही के औडर देके ओहनी के बोलौलक आउ अप्पन मरद के नोकर के रूप में अपना हीं रख लेलक आउ पाँचों के गड़हरा भरा देलक । रात में ऊ राजा के बेटी के भीर अप्पन पोसाक में भेज देलक । बेटी अप्पन मर्द के पा के खुसी में रहे लगल, आउ दिलवर जान भी नौकर के रूप में उहईं रहे लगलक।

कुछ दिना के बाद राजा के मालूम भे गेल कि नोकरवा हे, जे हमर दमदा के औरत है। ओकरा मारे ला ऊ अदमी छोड़लन। ऊ अदमियन छप्पर फार के घर में घुसइत हल तो देखलक कि दिलवर जान में सोलह सौ परी लपटायल हे। ओहनी घूम के चल आयल बाकि छप्पर पर से पान के पिलकी गिरल आउ दिलवर जान के कपड़ा में लग गेल। अन्हारे ओकर मरद देखलक तो समझल कि ऊ बदमास हो गेल हे। से तलवार से ऊ ओकर मूँड़ी काट देलक। अब ओकर मूँड़ी उड़ के इन्द्रासन में चल गेल। राजकुमार के फिनो पता चलल कि दिलवर जान बदमास न भेल हल, ऊ तो पान के दाग हल से ऊ बड़ी अफसोस में भेल, आउ ओकरा खोजे घर से निकल गेल। एगो जंगल में ऊ एगो साधु जी के भीर पहुँचल। ऊ साधु छव महीना सूतऽ हल, आउ छव महीना जागऽ हल। एकरा सेवा करे से ऊ एक महीना पहलहीं जाग गेल।

राजकुमार दिलवार जान के पावे के उपाय पूछलक, तो साधु ओकरा कउवा बना के इन्दरासन में भेज देलन। दिलवर जान के प्राण जे चोली में बस हल कउवा ओके ले-ले भागल आवइत हले। सब परी ओकरा पीछा कयलन तो ऊ घूम के ताकलक आउ ओहिजे जर के भसम हो गेल। एन्ने बड़ी दिन हो गेल तो साधु जी ओकरा खोजे निकललन तो जरल राख देखलन । साधु जी सोंटा से राखवा के पीटलन तो आगे से लड़कावा निकल गेल आउ गोड़-हाथ परे लगल । अबरी साधु जी ओकरा सुग्गा बना के भेजलन। उहाँ जा के ऊ अदमी हो गेल आउ इन्दरासन के नाच-गान में भाग लेवे लगल। ऊ तबला बजावे लगल तो ऊ दिन खूब इन्द्रासन जमल । सब बेसुध हो गेल तो ऊ दिलवर जान के चोली लेके उड़ गेल, आउ साधु जी के कुटी में पहुँच गेल। परियन भी पीछा कयले उहाँ तक आयल, बाकि साधु जी ओकरा मच्छड़ बना देलन, से ऊ न मिलल आउ परी सब लौट गेलन ।

अब दिलवर जान राजकुमार के एगो बँसुरी देलक आउ कहलक कि हमरा जब चाहवऽ तो बँसुरी बजा दी। अब राजकुमार दिलवर जान के लेके घरे चललक, तो साधु जी लोभा गेलन आउ सोंटा देके बँसुरी ले लेलन आउ बजा देलन तो दिलवर जान साधु भीर चल गेलक । तब राजकुमार सोंटा से कहलन कि तूं सोंट के साधु से बँसुरी छीन लावऽ । सोंटा साधु जी के सोटलक आउ बँसुरी छीन लेलक । राजकुमार दिलवर जान, बँसुरी आउ सोंटा लेके दोसरका ससुरार अयलक आउ एके पालकी पर अप्पन दूनो मेहरारू के विदा करा के घरे पहुँचलक । इहाँ ओकर माय-बाप रोइत रोइत अंधा हो गेलन हल, से ओहनी बेटा-पुतोह के आयल देख के आँख खोललन तो ओहनी के लौके लगल । राजकुमार के एगो दोस्त हलक । ऊ एक दिन कहलक कि इयार, तोरा दू-दू गो मेहरारू हवऽ, आउ हमरा एको नऽ है, से एगो हमरा दे दऽ । ऊ एगो मेहरारू ओकरा दे देलक। अब राजकुमार दिलवर जान आठ माय-बाप के साथ खुसी से रह के जीवन बितावे लगलक।

See translation

After a long penance, a king was blessed with a son. The boy was bright and studious, and when he turned sixteen, he had a dream: "There is a market at Bawan Gali and Tirthan Bazaar, filled with glass. In that market, there is a beautiful sweet seller. She sells sweets at three prices: twenty-five rupees per seer, fifty rupees per seer, and one hundred rupees per seer. If I could eat a whole seer of sweets, it would be wonderful!"

Excited to see the market from his dream, the boy prepared to go, but his father advised him to go and see it himself first. The father set up a similar market a hundred miles away and sat a sweet seller there to educate his son. After this, the boy finally set out to see the market. Loaded with money on horseback, he was accompanied by his father. Upon reaching the artificial market, the boy asked the sweet seller for the price of sweets, and after buying and tasting what he could, he couldn't believe it was the same market he saw in his dream. So, he left the market with his money on horseback. His father collapsed in shock right there.

The boy continued to ride for seven days and nights. One day, he saw an old woman coming from the Bawan Gali marketplace and, upon questioning her, she revealed the way. The boy reached there, and seeing the beautiful sweet seller, he fainted upon recognizing her from his dream. Upon regaining consciousness, he entered the market but had no idea how to find her. So, he rented a house in that market and began searching for the sweet seller.

One day, he found a house made of gold filled with golden items, and he realized it must belong to the sweet seller. He went and inquired about the price of sweets, weighed his seer of sweets, paid one hundred rupees, and then walked away without taking the sweets. This continued for seven days, until the sweet seller sent a letter to his father saying that she's facing difficulties and to come quickly.

Upon receiving the news, the father came and hid in the cupboard. The prince then bought sweets again and, as he was about to leave with his money, the sweet seller caught him and offered him eight seers of sweets or eight hundred rupees! The prince replied that he neither wanted the rupees nor the sweets, but wanted to marry the sweet seller instead. In response, the sweet seller took the prince into a room filled with eleven seers of sweets, assuring him that if he provided the sweets, he could marry her.

The boy took all the rupees he had and began working. He dropped all his money into a well, and his dissatisfaction with his situation made him consider ending his life. That night, Lord Shiva and Goddess Parvati were traveling in that area. Seeing him about to die, they asked him what was wrong, and he replied that he was about to die because he wanted to marry the sweet seller. Lord Shiva blessed him with ash, and the ashes transformed into money, filling his pockets. Hearing this, the sweet seller came to feed him, and his father was informed.

The father set a wedding date and commanded that they would only marry when they could eat one hundred thousand seers of rice, which was quite a daunting task. Upon hearing this, the prince returned to his place. He took known friends along and invited them as guests. That night, considering how they would eat so much rice, he saw some travelers and asked them. One of them introduced himself as 'Kamadega,' claiming he could cross a hundred thousand miles in a single step. Then he met ‘Kamanjar,’ who could see a hundred thousand miles in one glance. Next was ‘Kamtir,’ who could shoot an arrow across a hundred thousand miles, and finally, another traveler named ‘Kamakhoraki,’ who claimed to eat a hundred thousand seers of rice when in need. The prince invited all four to be his guests.

Then, as planned, they prepared for the feast. The sweet seller thought it was time to plot against the prince, but Kamakhoraki still had to eat, so he sat down to meal, dramatically consuming everything - rice, dal, and all the ghee and vegetables that were served. The guests were amazed.

When it was time for the prince to marry, the sweet seller said she wouldn't marry until she received a substantial bride price of ‘Sobran,’ perhaps worth hundreds of thousands. The prince instructed Kamadega to cross over seas and collect necessary items. Kamadega leaped over to fetch a bride price.

In the meantime, enchanted by his presence, the princess and the king had agreed to the marriage quite readily. Meanwhile, the prince was sitting in court disguised as a man when the sweet seller and her companions passed by, unaware of his presence. The prince then ordered some soldiers to capture the sweet seller, keeping them disguised as guards.

Days later, when it was revealed that a servant was indeed the prince’s beloved wife, the plot thickened. Through various trials and tribulations which included transformations and magic, the love story continued where spurned couples, trickery, and supernatural elements influenced the course of their lives.

Eventually, love triumphed as the prince, who had endured numerous challenges to find his loved one, succeeded in marrying the sweet seller. They returned home to great festivities, with the kingdom rejoicing. Despite hardships, marriage brought together both families and they lived happily, enduring life's journey with joy and laughter at their home, united with love and the fortune of their togetherness.