दइतिन बहिन के करमात

अलौकिक चमत्‍कार कथा

Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह

Tags: kingdom, family, conflict, survival, fantasy

The story revolves around a king, queen, and their two children—a son and a daughter. The king initially orders his son to kill his newborn sister, but the queen prevents this. As the girl grows, she becomes a menace, consuming people in the kingdom, including their parents. The boy escapes her grasp with the help of a mouse and runs away on a horse. The sister chases him, but ultimately, a tiger, which has escaped from captivity, intervenes and kills her. The boy reunites with the king, who announces the demise of the girl, restoring peace to the kingdom, allowing everyone to live harmoniously.

एगो राजा-रानी हलन । उनका एगो बेटा हल। जब बेटा छव-सात साल के हो गेल तब पढ़े ला पाठसाला में जाय लगल । फिनो राजा के एगो दइतिन लड़की जनम लेलक। जब राजा के एकर जानकारी भेल त ऊ अप्पन बेटा के कहलन कि तू जा के लड़की के तलवार से मूँड़ी काट दे। बेटा तलवार लेके मुँड़ी काटे चलल, तब माय बोलल- तोरा हम जनमउली हे, आउ एकरा हमर कोख से का जनम न भेल हे ? बेटा उहाँ से लौट के चल आयल आउ बाप के पास सब हाल कहलक । राजा सुनलन तो एँड़ी के लहर कपार पर चढ़ गेल । तुरत तलवार उठाके लड़की के मूँड़ी काटे चललन तब रानी देख के कहलन कि अब हम कउन उपाय करूँ । राजा से रानी कहलन, पहिले लड़की के सूरत देख लेईं। जब गोदी में लेके लड़की के सूरत निहारलन तो मोह आ गेल आठ लड़की के छोड़ देलन ।

जब लड़की जवान हो गेल तो सहर के सब लोग के पारा- पारी खाय लगल । लोग डर के मारे भागे लगलन । राजा के सम्पत्ति ओरा देलक। घोड़सार के सबहे घोड़ा, सबहे जनावर के खा गेल। एक दिन सोचलक कि ई बाप के भी काहे न खा जाऊँ कि हम्मर राज-पाट हो जाय। एही सोच के एक दिन दइतिन राजा के दरबार में बइठले में जाके खा गेल। परजा लोग देख के भाग चललन । एकरा बाद अप्पन माय के भी खा गेल। दइतिन लड़की सबके खा के निश्चिन्त होके बाहर के बचल-खुचल अमदी के खाय लगल। फिर सोचलक कि भइयो के भी काहे न खा जाऊँ कि एकदम निफिकरे होके कुलेल करब ।

एक दिन जब ओकर भाई पढ़ के रस्ता में आवइत हल तो एगो बुढ़िया कहलक कि भाग जा बबुआ, न तो तोहर बहिन तोहरो खा जतवऽ । सभे के तो खाइये गेलथुन। लड़का के विसवास न भेल । घरे आयल तो ओकर बहिन नस्ता करे ला रोटी दे देलक आउ सहर में अदमी के खाय चल गेल, आउ ओने से खाके आयल तो ओकरो खाय ला सोचलक। एकरा में दमे का हे? जब लड़का नस्ता करइत हल तो एगो मूस निकल के कहलक कि ए राजा के लड़का, तू निफिकिरे बइठ के नस्ता करइत हऽ बाकि तोर परान न बचतवऽ । तोहर बहिन अभी सहर के अदमी के खाय गेलथुन हे आउ आके तोहरा खा जथुन। एकरे पर लड़का कहलक-- ए भाई, तऽ हमर जान बचे के कोई उपाय न हे? तूं एतना बतवले तो ऐहू बताव, मूस कहलक कि तोहर बाप के कोठरी में एगो घोड़ा के ताला बंद करके रखल हवऽ । ओकर चाभी ताखा पर रखल हवऽ । देखऽ, अगर ऊ बचइत होवे तो तू भाग जा सकऽ हऽ । ऊ तुरत नस्ता छोड़के गेल आउ ताला खोल के घोड़ा पर सवार होके भाग चलल ।

एतने बीच में दइतिन आयल आउ भाई के न देखलक तो सगरो खोजलक बाकि कनहूँ न देखाई परल तो सतमंजिला छत पर चढ़के देखलक कि ऊ भागल जाइत हे, तो ऊ भी पीछे-पीछे पकड़े खातिर दउड़ल बाकि पकड़ा न सकल। एकरे पर दइतिन कहलक कि जो-जो तू कहाँ जयवे? फिन तो अयवे करवें ! राजा के लड़का एगो भारी जंगल में पहुँचलन आउ घोड़ा के एगो बड़का गो के बड़ पेड़ के नीचे छोड़ देलन आउ कहलन कि ए घोड़ा, तूं एही जगुन चर-चुर के अप्पन जीवन बीतइहऽ । बारह बरीस आसा पुराई देख के अप्पन परान छोड़ दीहऽ ।

एतना कहके राजा के लड़का पैदले जंगल में चल देलन। चलइत चलइत जंगल में एगो कुटिया देखाई पड़ल । ऊ कुटिया में कोई चीज के कमी नऽ हल। ऊ कुटिया में भगवान के हार भेजल समझ के खाय-पीये आउ रहे लगलन । एक दिन कुटिया के दुहारी पर एगो सियार आन के बइठ गेल । साधु जी जब भोजन कयलन तब सियार के भी देलन । सियार के बढ़ियाँ भोजन मिलल तो ओहीं पर रहे लगल सियार रोज-रोज साधुजी से भोजन पावे लगल आउ खा-खा के मोटा गेल ।

एक दिन सियरा जंगल में घूमे-फिरे गेल तो ओकरा मोटा-ताजा देख के एगो बाघ पूछलक कि अयँ सियार भाई, तूं एतना मोटा ताजा कइसे हो गेले हे? ऊ मोटाय के सब हाल सुनउलक । सुनके बाघ कहलक कि हमहुँ बाबा जी भीर रहब। एकरे पर सियरा कहलक ना दादा, बाबा के तूं खा जयबें तो फिर हमरो तकलीफ होयत । बाघ बड़ी कसम खयलक तब सियार ओकरा साथे लेके चलल । ओहनी कुटिया भिर पहुँचलन तो सियार कहलक पहिले हम बाबा से पूछले आव हिया। बाबा जइसन कहतथुन ओइसन हम करबउ । जब सियार बाबा से पूछे लगल तो बाघ कुटिया के पीछे सुने लगल । सियार बाबा से सब हाल कहलक, तो बाबा बाघ के रहे खातिर हुकुम दे देलन। दूनों बाबा के कुटी भिरू रहे लगलन।

कुछ दिन बीतला बाद बाघ सियार से कहलक कि साधु बाबा के बनावे-खाय में बड़ी तकलीफ होवऽ हइन । इनका हमनी सादी-विआह करा देतिअइन हल तो अच्छा हलइ। एही सोच के रात में खा-पी के दूनों चल देलन । जाइत-जाइत ओहनी राजा के एगो महल में पहुँचलन। राजा अपन लड़की के रहे ला एगो अलग महल बना देलन हल । रात-दिन लड़की ओकरे में रहऽ हल । कनहुँ से ओकरा में आवे-जाय के रस्ता ना हल बाकि एगो लोहा के छड़ के बड़का गो फाटक बनल हल । दूनों ओहिजे पहुँचलन। फिन सगरो घूम-फिर के देखलन तो कनहुँ से घुसे के राह ना मिलल । फिनों बाघ खिड़की के छड़ के गते-गते ममोर के सियार के जाय भर जगह बनवलक आउ सियार से कहलक कि तूं घुस के फाटक के किल्ली खोल दीहें। सियार घुसलक आउ किल्ली खोल देलक तब बाघ भी घुसल । देखइत हे कि राजा के एगो खूब सुन्नर लड़की सूतल हे । बाघ सोचलक कि कइसे एकरा ले चलूँ। अगर जगा के ले चलब तो डर के मारे मर जायत । एही तरह छव-पाँच करके पलंग सहित लड़की के पीठ पर उठाके ले चलल । जाइत-जाइत बीच जंगल में लड़की के नीन टूट गेल तऽ देखलक कि बाघ पलंग सहित हमरा पीठ पर ले जाइत हे । डर के मारे ओकर खून सूख गेल । बाकि अलचारे बेचारी का करइत हल। फिनो आँख मूँद के सूत गेल । बाघ जा के साधु बाबा के बगल में ओकरा रख देलक ।

बाबा के नीन टूटल तब देखलन कि एगो खूब सुन्नर लड़की पलंग पर नीन से सूतल हे । एकरा बाद लड़की के भी नीन टूटल। फिन बाबा आउ लड़की में बात-चीत होयल तऽ सारा हाल मालूम भेल। दूनों में परेम भे गेल। बाबा तुरंते समझ गेलन कि ई सब करनी बघवे के हे । बाघ के बोला के बाबा खिसिआयलन कि जहवाँ से लैले हें, उहवाँ तुरन्त पहुँचा आव । एकरे बीच लड़की के फिन नीन आ गेल। तुरंत बाघ बाबा के डरे रातो-रात जहवाँ से लौलक हल, ऊ लड़की के उहवाँ पहुँचा देलक आउ चल आयल। तब सियार कहलक कि हम कहइत हलिअउ ना कि बाबा खिसिअथुन ।

इहाँ लड़की के अप्पन महल में नीन टूटल तो हाय साधु बाबा, हाय साधु बाबा, कह के रोवे लगल आउ चिल्लावे लगल। ओकरा कोई पता ठेकाना ना मिलल हल। जब राजा के भेल कि लड़की के फाटक खुला हे, आउ लड़की हाय साधु बाबा कहके चिल्लाइत मालुम हे, तब सभे लोग सुनके कहे लगलन कि लड़की पगला गेल हे। बाकि लड़की कहलक कि जब हम सादी-बिआह करब, तो ऊ साधु बाबा से ही करब । राजा साधु बाबा के खोजे ला नउआ-ब्राह्मण के भेजलन। नउआ-ब्राह्मण ढेर दिन के बाद खोजइत-खोजइत ओही जगह पहुँचलन, जहाँ जंगल में साधु बाबा के साथे बाघ आउ सियार रहऽ हल । दूनों डरइत-डरइत उहाँ गेलन । देखइत हथ कि एगो साधु बाबा आसन पर बइठल हथ। जाके दूनों जानी दंड परनाम कयलन। साधु बाबा बइठे लागी आसन देलन। एकर बाद पूछा-पूछी होवे लगल। सबहे हाल मालुम हो गेल। पहिले तो साधु बाबा बिआह करे खातिर नाहिं-छाहिं कयलन। बाद में फिर तइयार हो गेलन आउ कहलन कि विआह एही सर्त पर करब कि बाघ भी साथे-साथे जायत। ई सर्त पर साधु बाबा के बिआह ओही लड़की से हो गेल। बाघ भी ओहीं पर रहे लगल। बाघ ला एगो पिंजड़ा बनावल गेल जेकरा से गाँव-गिराँव के अदमी के धोखा न दे सके। पिजड़े में बाघ के खाना-खोराक मिल गेल।

कुछ दिन के बाद राजा के इयाद पड़ल कि जरा हम अप्पन घरे जइती हल। तब ससुर कहलन-बबुआ एहु तो तोरे राज-पाट हवऽ बाकि जा, फिन चल अइहऽ।

राजा के दमाद उहवाँ से बोरा-के-बोरा ढेर मानी किसमिस लेके चल देलन आउ, उहाँ पर पहुँचलन जहाँ पर घोड़ा के छोड़ अयलन हल। बारह बरस में ठीक एक दिन बाकी हल। घोड़ा अप्पन परान तेयागे ला चारों टाँग ऊपर करके चीत पड़ल हल। परान छोड़इत हल कि ओइसहीं जाके राजा घोड़ा के कान में कुछ कहलन। अप्पन मालिक के बोली सुनते ही घोड़ा के कहवाँ से ताकत आ गेल कि फुरफुरा के उठल। जइसहीं घोड़ा उठल ओइसहीं राजा घोड़ा के खाय ला किसमिस के बोरा खोल देलन। घोड़ा खाय के मस्त हो गेल आउ उहवाँ से अप्पन राज में जाय के सब तइयारी कर देलन।

जाइत-जाइत राजा जब अप्पन राज में पहुँचलन तब अगल-बगल के गाँव के लोग कहलन कि ई राह से मत जा बाबू। ई राह में एगो दइतिन सब के खा जाहे। से ओने कोई लोग ना जाय। राजा के लड़का कहलन कि अप्पन घर-दुआरी भी छोड़ दीहीं। ऊ केकरो बात ना मानलन। घरे अयलन तो उनकर दइतिन बहिन बड़ी खुस होयल आउ मन में कहे लगल कि तहिनों तो नतिया के बेटा भाग गेल हल । अबकी कहाँ जायत!

एही से ओकरा कहाँ उठाऊँ, कहाँ बइठाऊँ, खूब स्वागत कयलक। पूड़ी पका के नस्ता करे ला देलक, आउ एगो ढोलक देलक कि लऽ बबुआ, एकरा बजावइत रहिहँऽ। हम आवइत हिया। इतना कहके दइतिन उनकर घोड़ा के मार के चीर-फाड़ के खाय लगल। ढोलक के अवाज मिलइत रहे। से दइतिन के मालुम होइत हल कि अभी भइवा नस्ता करइत हे, जेकरा से खूब मस्त होके खाइत हल। एकरे बीच में एगो बिलाई आके राजा के लड़का से कहलक कि तूं बड़ी मौज से पूड़ी खाइत हऽ राजा, बाकि तोर जान अब तुरत चल जतव। देखऽ तोर बहिन तोर घोड़ा के चीर-फाड़ के खाइत हवऽ, आउ ढोलक बजइत रहइत तक आनन्द से खतवऽ। ओकरा पता चलइत रहतई कि भइवा अभी नस्ता करइत हे। राजा के लड़का पूछलक कि हमरा बचे के का उपाय हे? बिलाई बोलल कि अब भागे बिना कोई दूसर उपाय नऽ हे। लाव हम अप्पन पोंछी से ढोल बजावइत हिवऽ, आउ तूं जेतना फूंर्ती से भाग सकऽ हऽ, भाग जा। राजा तुरत बिलाई के ढोलक देके भाग चललन।

बिलाई ढोलक बजावे लगल । जब दइतिन घोड़ा खा के डकरइत ओने से घरे आवइत हे, तो बिलाई ढोलक छोड़ के भाग गेल। जइसहीं ढोलक बन्द हो गेल तो दइतिन आयल दउड़ल, आउ देखलक कि भाई उहाँ नऽ हे। सगरो देख के छत पर चढ़ के देखलक कि ऊ हे छौड़ा-पुत्ता नतिया भागल जाइत हे नऽ? अच्छे, गोड़े-गोड़े भागल जाइत हे। अब कहवाँ जायत? ऊ खदेरे लगल । भागइत-भागइत राजा के लड़का थक गेल, तो एगो बर के पेड़ पर बरहोर धर के चढ़ गेल । दइतिन भी पेड़ पर चढ़ऽ गेल आउ ओकरा पकड़े लगल।

दूनों ई डाढ़ से ऊ डाढ़ खदेरइत-भागइत हलन । राजा के लड़का के अब-तब में परान हो गेल। इहाँ बाघ के असगुन मालुम होयल। ऊ पिंजड़ा में छरपे लगल तो सभे लोग कहे लगलन कि बाघ बउरा गेल हे। गोली बन्दूक खोजाय लगल, तब तक बाघ धक्का मारलक कि पिंजड़ा के दरवाजा टूट गेल, आउ छरपइत सीधे उहवाँ पहुँच गेल, जहवाँ पर राजा के लड़का के दइतिन जान मारे ला पकड़इत हल। जइसेहीं दइतिन राजा के पकड़े ला चहलक, तइसहीं बाघ उछल के दइतिन के नरेटी दबोच देलक। दइतिन के परान निकल गेल। राजा पेड़ से उतरइत बेहोस हो गेलन। बाघ ओही जगह पर बइठ के अगोरइत हल।

इहवाँ पर राजा सोचलन कि बाघ इहवाँ से छूटल तो केकरो कुछ नऽ कयलक। सीधे कने तो छरपइत जाइत हे। हो ना हो, जरूर कोई बात है। राजा भी बाघ के पंजा के चिन्हानी देखइत हाथी पर चढ़ के चल देलन। जाइत-जाइत ओहू भी उहईं पहुँच गेलन तो देखइत हथ कि हम्मर दमाद के बगल में बाघ बइठल हे। थोड़े देर के बाद दमाद के होस आयल तो सब खिस्सा कह सुनवलन। एकरा बाद उहवाँ से अप्पन घरे अयलन आउ अगल-बगल के सब लोग से कहलन कि हम दइतिन के मार देली। अब कोई बात के डर-भय न हे। भागल सब लोग आ के बस जा। उनका सब परजा सुन के आ गेलन। सब लोग मिल-जुल के अमन-चैन से जिन्दगी बितावे लगलन।

See translation

Once upon a time, there was a king and queen who had a son. When the son was six or seven years old, he began to go to school to study. Then the queen gave birth to a daughter. When the king learned about this, he ordered his son to go and kill the girl with a sword. The son took the sword and went to cut off the girl's head, but the mother said, "You are my child too, and she was born from my womb." The son returned and told his father everything. Upon hearing this, the king became furious. He immediately took the sword and went to kill the girl, but the queen, seeing this, said, "What should I do now?" The queen then advised the king to first take a look at the girl's face. When she looked at the girl, she became enchanted and decided to spare her life.

As time passed, the girl grew up and began to terrify everyone in the city. People started to flee in fear. The king's wealth was taken away, and all the horses and livestock were eaten by her. One day, she thought, "Why shouldn't I eat my father too so that I can rule the kingdom?" With this in mind, she went to the king's court and devoured him. The subjects watched in horror and ran away. Afterward, she also ate her mother. Having eaten everyone, the girl felt relaxed and began to feast on whatever leftovers remained outside. Then she thought, "Why shouldn't I eat my brother too so that I can have everything to myself?"

One day, when her brother was returning from school, an old woman warned him, "Run away, boy, or your sister will eat you too. She has already devoured everyone else." The boy did not believe this. When he got home, his sister offered him bread for breakfast and then went out to eat people in the city. After eating, she thought of eating her brother too. What could go wrong? While the boy was having breakfast, a mouse emerged and said, "Hey, king's son, you’re eating peacefully, but you won’t be alive for long. Your sister has just eaten people from the city and will come to devour you too." The boy asked, "Is there any way to save myself?" The mouse replied, "Your father has locked a horse in his room. The key is kept on the shelf. If the horse is still alive, you can escape." He immediately left his breakfast, went to unlock the door, and mounted the horse, escaping swiftly.

Meanwhile, the girl returned and did not find her brother. She searched everywhere but couldn't find him, so she climbed up to the seventh-floor rooftop and saw him riding away. Furious, she chased after him, but he escaped. When the boy got tired of running, he climbed up a tree, and the girl also climbed the tree to catch him.

The chase continued, and the king's son was exhausted. Meanwhile, the tiger, who had been locked in a cage, sensed its opportunity and started making noise. The people around began to search for guns and ammunition, but before they could get ready, the tiger managed to break free from its cage and leaped over, right where the king's son was being caught by the girl. Just as the girl was about to seize the king's son, the tiger jumped and caught her instead, resulting in her demise.

Seeing this, the king climbed down the tree, feeling faint. The tiger sat there, waiting. The king thought, if the tiger has broken free, it wouldn’t harm anyone; it would go straight to its freedom. He speculated that something must have happened. The king followed the paw prints of the tiger and rode an elephant to track it down. Upon arriving at the same spot, he saw the tiger sitting next to his son-in-law. After a while, the son-in-law regained consciousness and shared the whole story.

Afterward, they returned to their home, and the king addressed everyone nearby, saying he had killed the girl. Now, there was no fear left. Everyone could come and settle. The subjects, having heard this, gathered and lived together in peace and harmony.