Based on मगध की लोक कथाएं : अनुशाीलन एवं संचयन by डॉ. राम प्रसाद सिंह
Tags: friendship, adventure, supernatural, loyalty, bravery
The story revolves around the friendship between a king's son and a minister's son, who discover that they were both married off as children. They set out to visit their in-laws, where they encounter various challenges and intriguing situations. Upon reaching the king's in-laws, they attend a gathering where the minister's son follows the queen out of curiosity and discovers she secretly visits a demon. Concerned for their safety and that of the queen, the two friends devise a plan to observe the demon's behavior. As they gather information, the minister's son also encounters a red fairy and seeks to protect a bird from a snake, showcasing themes of loyalty, bravery, and the intertwining of their fates amidst supernatural elements.
एगो राजा आउ एगो बजीर के लड़का हलई । दूनु में बड़ी दोस्ती हलई । दूनु के लिखना आउ रहना एके जगह होवो हलई । पढ़-लिख के होसिआर हो गेल तो दूनु अपने में गौर कैलक माय-बाप हमनी के सादी - विआह कैलक हे कि न एकर पता लगावे के चाही। तू हम्मर माय से जा के पूछऽ आउ हम तोर माय से जा के पूछवौ । दूनु एक - दोसर के पूछ आयल आउ ई जान के खूब खुस भेल कि दूनु के विआह बचपन में हो गेले हई । दूनु गौर कर के एक साथ घोड़ा पर सवार हो के ससुरार के राह पकड़ लेलक । चलते -चलते एगो चौराहा पर पहुँच गेल। ठहर के दून सोचे लगल । इहाँ से दूगो राह दू दने जा हई । राजा के लड़कावा ई पूछलक कि काहे घोड़ा खड़ा कयले तब बजीर के लड़कावा कहलकई कि अकले तो मन नहिए लगतई । ई से तू कहौ तो हम साथ चलूँ आउ नञ तो हमरा साथ ले चलौ । राजा के लड़का कहलकई कि अच्छा भाय, हमरे ससुरार चलौऽ ।
बजीर के लड़का राजा के लड़का के साथ अप्पन घोड़ा घुरा लेलका आउ राजा के लड़का के ससुरार पहुँच गेल। हाथ-पैर धोलक । घरे गेल आउ दूनु नास्ता - पानी करके बंगला पर आके बैठ गेल। रात में फेर बीजे आयल । भोजन करके फिर बंगले पर आके बइठल तब वजीर के लइका कहे लगल , इयार, अब तो रनिवास के बीजे होतो अब तू चल जइबे आउ हमरा तो इहाँ अकेले रहे पड़तई । तब राजा हँस देलकई आउ कहे लगलई कि जैसन हम्मर ससुरार वैसने तोरो ससुरार हउ । हम तोरो रनिवास में लेले चलबो। तब वजीर के लइका कहलकै - देख इयार, मजाक नञ् करै, ले ले जाय पड़तो जरूर ! तब राजा के लड़का कहलकै - मजाक नञ करऽ हियो इयार ! जरूर लेले चलबो। लेकिन जाय घड़ी लोग दूसे लगतो तब? तब वजीर के लड़कवा कहलकै कि हाँ इयार, दूसतो जरूर ! लेकिन तू कहिँहँऽ कि कउन नञ् जान हई कि केकर माय-बहिन के पास की रहऽ हौ। लेकिन परदा से छिपल हौ ।
रनिवास के बीजे अलई तो दूनु इयार रनिवास में चल गेल आउ एके घर में परदा लगा के दूनो इयार अलगे-अलगे सूत गेलई । राजा के लड़का के तेल-तेलवाई होलई, तो ऊ सूत गेलई बाकि बजीर के लइका जगले रहलई । रानी चुप्पे उठ गेलई आउ रसोईघर में जाके एक थारी में छवो रस के भोजन लेलकई आउ बाहर चल गेलई ।
वजीर के लड़का ई सब देख के रानी के पीछे-पीछे चलल । रानी के देखलक कि ऊ बीच जंगल में एगो दैत्य के घर गेलई । ई दुआरिए पर ठहर के सब तमासा देखे लगल। जाइते के साथ रानी कहलकई कि उठऽ इयार, खाना खा लऽ , तो दैत्य उठके खाना खाय लगलई आउ पूछलकै कि आज तो बड़ी देर होलो। की करऽ हला ? तब रानी अप्पन मरद के हाल सुना देलकई। बात - गलवात करते रात खतम भे गेलई, तो रानी उठ के चललै आउ घरे आन के राजा के खटिया पर पड़ रहलै। वजीर के लड़का भी पहिल ही आन के सूत रहलै ।
दोसरा दिना राजा वजीर के लड़कावा सबेरे दिसा - मैदान गेलई तो राजा के लड़का पूछलकै कि तू उदास काहे हऽ इयार ? इयार राजा के राते के सब हाल कह सुनौलका आउ कहलका कि इयार के अब जान न बचतई सेई से उदास हियो। राजा के लड़कावा कहकै कि तब चलौ हम छोड़ के चल चलै । तऽ ऊ कहलकै कि नञ, कुछ दिन रह के रानी के चाल - चलन देख लेवो के चहियो । वजीर के लड़का ऊ दिना घूम - फिर के दैत्य के घर के रस्ता देख लेलक । रात में फिनो दूनो इयार रनिवास गेलई आउ राजा तो तेल - तेलवाई के बाद सूत रहलई । बाकि वजीर पहिले ही दैत्य के घर जाके खटिया के नीचे सूत रहलई। जब रानी पहुँचल तो दैत्य के उठौलक । दैत्य खाना खाय लगलई आउ रानी के एगो लालफल देलक आउ कहलक कि जब तक हम खाना खा हियो तब तक तूहुँ फल के खा लऽ । तब रानी पूछे लगल कि ई फल के देलको हे आउ एकरा की नाम हई ? तब हम इखइबो! तब दैत्य कहलक कि हम्मर एगो बहिन लाल परी विसुनलोक में रहऽ हई । ओकरे विसुन भगवान इनाम में ई फल देलका हल, ओहो हमरा देलक । हम सोच लूँ कि हम की खाऊँ, से हमरा एगो रानी हई ओकरा देबई । रानी भी फल के खटिया के नीचे रख देलई जेकरा वजीर ले लेलकई आउ ओधड़ के उहाँ से दरवाजा पर आके सब बात सुने लगलई ।
अन्हारे जब रानी उहाँ से चललई तो ऊ पहिले ही आन के अप्पन खटिया पर सूत गेलई। रानी भी आन के राजा के खाट पर सूत गेल ।
दोसर दिन दूनु इयार मैदान गेलन तो वजीर रात के बात राजा के सुना देलकई आउ कहलका कि आज तू बाहर कुर्सी निकाल के कहिहँऽ कि हमरा राते लाल पड़ी आन के लाल फल देलका हे से ला ओकरा ई घड़ी देखई आउ खाई। दूनू बतिया के घरे अयलन आउ रानी के सुना के ओसहीं कहलका। रानी ई हाल सुनके सोचलक कि हम अदमी हो के दैत्य से दोस्ती कयले ही आउ हम्मर पति से लाल परी दोस्ती कयले हे, से आज हम दैत्य से कह देवो कि हम तोरा से दोस्ती न रखबो। रात होलई तो रानी एगो झडुआ लेके दैत्य के महल में पहुँचलै।
वजीर बाहरै रुकलै कि हो सकऽ हे कि आज दून में लड़ाई होथ । दैत्य के पास जाके रानी झडुआ से मार के उठलकै आउ कहलकै कि हम तोरा साथ नञ रहल चहियो । काहे से कि तोर बहिन समान लायक आउ हमरा समान नालायक कोई नञ हई। तोर बहिन ई लोकण में हम्मर पति से दोस्ती कयले हई आउ हम तोरा जैसन दैत्य से।
तब दैत्य गुस्सा में हो कहलकै कि कल्ह तू हमरा साथे विसुनलोक में चलिहँ आउ देखिहैं कि अप्पन इनाम केकरा दे हई । रात खतम होला पर रानी घरे आ गेल आउ वजीर पहिल ही आन के सूत गेल ।
फिनो बिहान होला पर राजा आउ वजीर मैदान नदी किनारे गेलन तो वजीर सब हाल रात के कह सुनौलका आउ कहलका कि आज रात के हम विसुनलोक जयबो - एगो टिकिया आउ सलाई के इंतजाम कर दिहाँ। सब इंजताम हो गेला। रात में रानी दैत्य के महल में आयल । दैत्य जल्दी - जल्दी खाना खाके कहलकई कि अब हम्मर खटिया बिसुनलोक ला उड़तई। वजीर खटिया के नीचे ओरदाना आउ सिरहाना पकड़ के लटक गेला। खटिया उड़लक आउ पलक मारते बिसुनलोक में पहुँच गेल।
उहाँ नाच -गान हो रहल हलई। रानी आउ दैत्य खटिया से उतरल आउ गोड़ दबा के गेल आउ बिसुन भगवान के बगल में जा के बइठ रहल। एने वजीर के लड़का चिलिम -के - चिलिम गाँजा चढ़ा के पीये लगल आउ धुआँ तबलची के मुँह पर फेंके लगल । तबलची भी गाँजा माँगलकै तो वजीर कहलकई कि अपने चढ़ा के पी ला तब तक हम तबलवा के ठोक दे हियो । तबलची झट वजीर के तबला दे देलक। वजीर तबला बजावइत हलई कि लाल परी के नाच से खुस होंके बिसुन भगवान ओकर पर एगो लाल गमछा फेंक देलका । परी गमछा के तबलची पर फेंक देलकई। तबलची गमछा के चपोत के जेब में रख लेलका । दैत्य कहलक कि देखलई न रानी, लालपरी के लाल गमछा मिललई ई गमछा तोर पति के मिल जयतो तो हम जानबों कि हमर बहिन तोर पति से रहो हई। देख ला लाल गमछा हई । नाच खतम होते झट वजीर खटिया तर आन के पड़ रहल। दैत्य आउ रानी दूनु खटिया पर बइठलन आउ खटिया उड़ल। लाल गमछा के बात होइते हल कि खटिया दैत्य के महल में आ गिरल । रानी के आवे के बेरा हो गेलई हल। बाकि दैत्य फेर लाल गमछा के इयाद करावे लगल तलगुत वजीर के मौका मिलल आउ घुसुक के घर से बाहर हो गेल। रानी से अगड़िए आन के ऊ पलंग पर पड़ रहल।
भेल बिहान रानी घर के काम-काज में लग गेलई आउ दूनू इयार नदी किछारे जा के राय कयलन कि कल्हे के तरह आजो त गमछा माँगिहँऽ। रांजा घरे आन के गमछा माँगलक तो वजीर लाके देखा देलक। रानी ई देख के मन में सोचलक कि आज भँडुए के जना के पूछबै। रात हो गेला पर रोज के तरह रानी दैत्य भीर गेल। वजीर पीछे से जाके झगड़ा के डरे दुहारिए पर से सब तमाशा देखे लगल। रानी जाके झडुआवे लगल तो दैत्य समझौलक कि कल फिनो बिसुनलोक में चलके देख ले। कोई तरह से सांत होके रात बीत गेल। रानी घर अयलई । वजीर आउ राजा भी नदी किछारे आन के बैकुंठ चले के परोगराम बनौलक ।
दूसर रात रानी दैत्य के पास गेल आउ वजीर भी चुपके से जाके खटिया तर सूत रहल। दैत्य आउ रानी खटिया पर बैठ के खटिया उड़वौलक आउ पलक मारते बिसुनलोक में पहुँच गेल। दैत बिसुन भगवान से कहलक 'सरकार, लालपरी मृतुभुवन में अदमी से परेम करऽ हथ । परमान में लाल गमछा माँगल जाय। लाल गमछा लाल परी से बिसुन भगवान माँगलथिन तब लाल परी तबलची से माँगे लगलई । तबलची कहकई कि तू हमरा कल्ह कुछो नञ् देले हें । ई बात पर दूनू में बकझक हो गेलई । दूनू भगवान के सामने कसम खाय ला तैयार हो गेलई तब बिसुन भगवान कहलन कि नञ्, अब तू मृतुभुवन में जा के रहऽ । इहाँ तोरा जगह नञ् हई । लाल परी कहकई कि सरकार मृतुभुवन में जेता अदमी हई ओकर मुँड़ी काट के हम ले आवइत ही । कोई मुँड़ी घट जायत तो समझब कि ओही हम्मर परेमी हे। भगवान मुँड़ी काट के लावे ला आज्ञा दे देलन । दैत्य आउ रानी खटिया पर बइठलन । वजीर भी नीचे आ घुसल । खटिया उड़ल आउ दैत्य के घर में आ गिरल । रानी आन के घरे राजा के पलंग पर पड़ रहल। वजीर उनके से पहिल आन के सूत गेलन
बिहान होते नदी किनारे जा के दूनू इयार बतिअयलकै । वजीर कहकई कि हमरे कारण आज सब के जान चल जयतो । राजा कहलक कि हमनी के भाग जाय के चाहीं । वजीर कहलकै कि भागऽ चाहे, कुछ जान जयतो जरूर ! राजा जान बचे के उपाय पूछलकै, तो वजीर कहकई कि दैत्य के घर के नजीक एगो कपड़ा के घर बना दऽ आउ दैत्य के घर दने ओकर फाटक लगा दऽ । हम एगो कड़कबिन लेके पहरा देबो । सब इंतजाम भे गेल। लालपरी मृतभुवन में आयल आउ वजीर के लइका के नीचे मुँड़ी आउ उपरे चूतड़ कयले देख के एक लाती मारलक । वजीर लोघड़ा के उठल तो लालपरी ओकरा से पूछलक कि तू कौन हैं ? आउ का करऽ हैं ? वजीर कहकई कि हम राजा के नोकर ही । इहाँ बाँसुवा के नाच हो हे । ओकरे अगोरी करे हियो । लालपरी भी बाँसुवा के नाच देखे ला पूछलक। वजीर कहलक कि अब आगे साल बैसाख पुनिया के नाच होतौ। ई साल तो खतम हो गेलो। लालपरी नाच देखे के लोभ से बिसुन भगवान से फिनो एक बरिस के टैम माँगलक । एने वजीर के लड़का के चिंता भे गेल कि बाँसुवा के नाच काहाँ से लावल जाय। एही मन में सोच के ऊ राजा के कह के चलल ।
जाइत - जाइत कहाकोप के जंगल में पहुँच गेल । उहाँ एगो पेड़ के नीचे ठहर गेल। ऊ पेड़ पर एगो चिड़िया रहऽ हलै, जे रोज एगो अंडे दे हलई बाकि अंडवा के एगो साँप खा जा हलै । आजो अजगरवा पेड़ तर पहुँचले तो वजीर के लड़का झट से तलवार निकाल के ओकरा तीन-चार खुंडी कर देलकै । सुबह के खुस हो के चिरिवाँ अपन बचवा के खिलावे लगलै तो नञ खलकै आउ कहकई के पहिले नीचे के अदमियाँ के खिलाव । ओही हम्मर जान बचौलकै हे ।
Once upon a time, there was a king and a minister's son. They were very close friends and lived and studied together. After becoming educated and clever, they both decided to find out if their parents had arranged their marriages in childhood. They agreed to ask their mothers, so one would ask the other's mother while the other would do the same. They happily learned that both of them had indeed been married off as children.
They set off together on horses, heading towards their in-laws' home. While riding, they reached a crossroads and decided to pause and think about which road to take. The king's son asked why they were stopping, and the minister's son replied that he was feeling lonely. He suggested that if the king's son wanted, they could go together, or if not, he would go alone. The king's son agreed, saying, "Alright, let's go together to my in-laws."
The minister's son turned his horse around and they reached the king's in-laws' house. After washing their hands and feet, they went home and had some food before retiring to their bungalow. In the evening, they were invited back for dinner. After eating, they returned to the bungalow to relax. The minister's son remarked, "Friend, it'll soon be time for the queen's gathering; soon you will leave, and I will be left here alone." The king laughed and said, "Your in-laws are as good as mine. I will take you to the queen's gathering." The minister's son cautioned him not to joke about it, saying, "You must take me with you!" The king insisted he'd definitely take him. But what if people get suspicious on the way?
The minister's son replied, "Yes, they might! But do you know that no one knows where anyone's family resides? However, it remains hidden behind a veil."
When the time for the queen's gathering came, the two friends entered. They separated with a curtain in their shared home and fell asleep. The king's son was soon fast asleep while the minister's son stayed awake. The queen quietly rose and went to the kitchen, where she gathered a plate of six types of food, and then went outside.
Seeing this, the minister's son followed the queen. He watched as she entered the house of a demon in the middle of the forest. He stopped at the doorway and began to observe everything.
As the queen was inside, she began to eat. The demon, noticing her, asked why she had come so late. The queen explained her circumstances regarding her husband. They spoke, and as the night ended, the queen got up to return home, and the minister's son had also fallen asleep in his home.
The next day, the king and the minister's son went to the riverbank. The king asked, "Why are you looking so sad, friend?" The minister's son recounted all that had happened the previous night and added, "I'm worried I won't survive." The king suggested they leave, but the minister's son replied, "No, let's stay a few more days and observe the queen's behavior." That day, the minister's son explored the route to the demon's house.
At night, both friends returned to the queen's gathering, and after the king had been oiled, he fell asleep. Meanwhile, the minister's son had already gone to the demon's house and fell asleep under the bed. When the queen arrived, the demon woke up and began to eat, offering the queen a red fruit, saying, "As long as I eat, you must eat this fruit too." The queen asked who had given her the fruit and what it was called. The demon explained that it was a fruit given to his sister by Lord Vishun and that he thought he would give it to the queen. The queen kept the fruit hidden under the bed, which the minister's son later took and went outside to listen in.
When it was dark, the queen returned home and fell asleep on the king's bed.
The following day, both friends went to the field and discussed the previous night events. The minister's son said, "Today I believe everyone's life is at risk." The king suggested they should flee. The minister cautioned that escaping would surely lead to danger. When the king asked how to save themselves, the minister proposed building a small hut near the demon's place and painting a gate leading to the demon's house. "I will keep watch," he said. All preparations were made.
The red fairy came to the mortal world and, upon seeing the minister's son cheating with a woman, struck him with a stick. The minister's son got up and asked her who she was and what she was doing. He replied that he was the king's servant and that he was there to witness a dance. The red fairy also wanted to see the dance and asked, "When will it take place?" The minister informed her that it would take place next year, but this year was almost over.
Tempted to witness the dance, the red fairy asked Lord Vishun for another year. Meanwhile, the minister's son became worried about finding the dancer for the performance. With that thought in mind, he went to tell the king.
As he was going, he entered a forest. There, beneath a tree, he stopped. In that tree lived a bird that lay an egg daily, but a snake devoured it. Today, the python reached the tree, and the minister's son quickly pulled out his sword and stabbed it three or four times. Delighted, the bird began to feed her chick, realizing it was safe from danger, and thanked him for saving her life.